जब ये टेप मैं सुन चुका और कल्पेश जी का पुलिस को दिया गया शिकायती पत्र पढ़ चुका तो पिक्चर क्लीयर हो गई. वो आशंकाएं भी साफ हो गई जो मन में छाईं थीं. कल्पेश याग्निक अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील थे. उनकी इस कमजोरी को सलोनी अरोड़ा भांप चुकी थी. यही कारण है कि वह पूरी दबंगई से उन्हें लगातार बरसों बरस ब्लैकमेल करती रही. कल्पेश जी का फोन वह कई बरसों से चोरी से टेप कर रही थी. वह उन्हें सार्वजनिक करने की धमकी देती थी.
सलोनी अरोड़ा यहां तक कहती थी कि वह #meetoo कैंपेन चला देगी कल्पेश के नाम पर फिर तो किसी को शोषण किए जाने को लेकर प्रमाण मांगने की जरूरत ही नहीं होगी. कल्पेश जी अपने पत्र में साफ लिखते हैं कि वह सलोनी से वह केवल एक बार मिले, वह भी पब्लिक प्लेस पर. कल्पेश जी के पूरे पत्र में यह भय बार बार दिख रहा है कि सलोनी अगर झूठे ही केस कर दे तो उसको झूठा साबित करने का सारा भार आरोपी पर हो जाएगा और जब तक सच-झूठ सामने आएगा तब तक उनका करियर प्रतिष्ठा तपस्या नष्ट-तबाह किया जा चुका होगा.
सलोनी का टेप और कल्पेश जी का पत्र, दोनों को कई कई बार ध्यान से सुनें-पढ़ें. फिर सोचें कि एक ब्लैकमेलर महिला द्वारा चरित्र हत्या किए जाने की लगातार दी जाने वाली धमकी से आतंकित होकर एक लिखने-पढ़ने वाला संवेदनशील संपादक अंतत: जीवन खत्म करने को मजबूर हो जाता है क्योंकि उसके लिए उसकी प्रतिष्ठा और इज्जत से बड़ी चीज कोई नहीं है.
मैं खुद अगर कल्पेश जी की जगह होता और सलोनी जैसी कोई भी अगर ब्लैकमेलिंग की पहली कहानी सुनाना शुरू करती तो उसे फोन पर ही एकतरफा लगातार तब तक माकानाकासाका करता रहता जब तक वह फोन आफ कर भाग न खड़ी होती. पर कल्पेश जी ऐसे न थे. वह पुलिस को दिए पत्र में लिखते हैं कि अगर सलोनी उनकी चरित्र हत्या पब्लिकली शुरू करती है तो महिला होने का उसे फायदा मिलेगा, प्रथम दृष्टया सब उसे ही पीड़ित मानते हुए उसकी कहानी को सच मान लेंगे.
देश के कड़े महिला कानूनों को लेकर भी कल्पेश जी आतंकित थे कि इन कानूनों का फायदा सलोनी जैसी ब्लैकमेलर महिलाओं को मिल जाता है.
जो ये कल्पेश-सलोनी वार्ता का टेप है, वह थोड़ा संपादित है. सुनने से आपको लग जाएगा. इसका मकसद सिर्फ ये है कि सलोनी का असली चरित्र सबके सामने आ जाए. सलोनी और कल्पेश जी की बातचीत के लगभग बहत्तर घंटे के टेप मिले हैं. कल्पेश जी के परिवार के एक करीबी वकील का कहना है कि यह आशंका पूरी तरह गलत है कि कल्पेश जी का सलोनी के साथ किसी किस्म का रिलेशनशिप था या सलोनी के पास कल्पेश जी का कोई अंतरंग वीडियो था.
कल्पेश जी के परिवार के इस करीबी वकील का दावा है कि पुलिस अपना काम कर रही है, अपने लेवल से वह जांच पड़ताल कर रही है लेकिन एक जांच खानदान के लेवल पर निजी तौर पर कराई गई जिसमें यह साबित हुआ कि कल्पेश जी के मन में खुद की इज्जत और प्रतिष्ठा के प्रति जो संवेदनशीलता थी और इसके चौपट होने को लेकर जो आशंका थी, इसी भय वाली मनोवृत्ति को सलोनी ने कायदे से समझ लिया और उन्हें इसी एंगल पर ”सब कुछ चौपट कर दूंगी, बर्बाद कर दूंगी” टाइप बोलती-धमकाती रही.
सलोनी ने लगातार ग्यारह साल कल्पेश जी के फोन टेप किए. बाद में उसने इन टेपों को एडिट कर कल्पेश जी को भेजना-धमकाना शुरू किया. इससे कल्पेश जी एकदम से घबरा गए. अंत में वह सलोनी के खिलाफ पुलिस कंप्लेन करने को मजबूर हुए लेकिन उनने कोई एफआईआर नहीं कराया बल्कि केवल पुलिस को ये आगाह किया कि अगर उनके खिलाफ सलोनी कोई भी केस कराती है तो उनका पक्ष जरूर सुना-लिया जाए.
कल्पेश जी अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा को लेकर इतने सतर्क थे कि उन्होंने पुलिस अधिकारी से भी पत्र में लिखित रूप से कहा है कि इस पत्र को किसी भी रूप में सार्वजनिक न किया जाए.
कल्पेश जी का पत्र उनकी पीड़ा, उनकी मन:स्थिति, उनके भयों-आशंकाओं को जानने-समझने के लिए पर्याप्त है. सलोनी अरोड़ा ने खुद के महिला होने का फायदा उठाया. उसने उल्टे-सीधे केस करने की धमकियां दी. कल्पेश जी बतौर संपादक जानते थे कि अगर किसी महिला ने गलत ही किसी पुरुष के खिलाफ केस कर दिया तो पुरुष निर्दोष होते हुए भी पूरे समाज में प्रतिष्ठाविहीन हो जाएगा. ऐसे में कल्पेश जी जैसे प्रतिष्ठा व सम्मान के प्रति बेहद आग्रही, बेहद सतर्क, बेहद संवेदनशील शख्स के लिए सरेबाजार बेइज्जत होने की कल्पना कर पाना मुश्किल था. वे एक समय ऐसी स्थिति में आ गए जब उन्हें बेइज्जत होने से ज्यादा अच्छा मर जाना लगा.
सुनें सलोनी की ब्लैकमेलिंग व धमकियों वाला टेप और उसके बाद पढ़ें कल्पेश जी द्वारा पुलिस अधिकारी को दिया गया पत्र… इसी पत्र को कल्पेश जी द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद सुसाइड लेटर मान लिया गया.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
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