गुजरात के विकास की मीडिया में खूब चर्चा होती है, उस गुजरात के करीब 400 से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकारों का गुजरात विधानसभा एवं सचिवालय में प्रवेश प्रतिबंधित है।
भारत का संविधान जो कि हमें आर्टिकल 19 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, भारत के किसी भी कोने में हम स्वतंत्र रुप से घूम फिर सकते हैं, लेकिन गुजरात सरकार मैं बैठे कुछ मुट्ठी भर शासक भारतीय संविधान की सरेआम धज्जियां उडा कर, लोकशाही के नाम पर तानाशाही चला रहे है।
भारत का संविधान के द्वारा हमें सभा करना, रैली करना और संगठन बनाने की आजादी मिली हुई है. लेकिन गुजरात सरकार मैं बैठे कुछ मुट्ठी भर तानाशाह भारतीय संविधान को कहां मानते है?
गुजरात में अगर आपने सामाजिक संगठन के माध्यम से समाज के वंचित और पीड़ित समुदाय के लोगों की आवाज बनने की कोशिश की तो, आपके ऊपर झूठे मुकदमे दर्ज किए जाते हैं, आप के परिवार से अगर कोई सरकारी नौकरी कर रहा होता है तो उनको परेशान किया जाता है, विधानसभा व सचिवालय एवं दूसरी सार्वजनिक जगहों पर आप का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाता है।
गुजरात में करीब 400 से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का गुजरात विधानसभा, सचिवालय और अन्य सार्वजनिक सरकारी जगहों में प्रवेश प्रतिबंधित है, जो कि बिल्कुल गैरकानूनी है।
हमारे देश में ऐसा कोई भी कानून नहीं है, जो हमारे संविधान को चैलेंज करें. संविधान के माध्यम से देश के सभी नागरिकों को अपनी मर्जी के मुताबिक कहीं पर भी स्वतंत्र रूप से घूमने फिरने की आजादी मिली हुई है, लेकिन गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय रुपानी खुद को संविधान से भी बड़ा मानते हैं. RSS प्रेरित भाजपा सरकार की यह तानाशाही हमें कतई मंजूर नहीं है।
हमारे देश में सिर्फ गुजरात ही एकमात्र ऐसा विकास मॉडल है, जहां पर लोगों को अपने टेक्ष से बनी सरकारी इमारतों में प्रवेश प्रतिबंधित है एवं लोगों के टेक्ष से जिनकी सैलरी होती है उस सरकारी नौकरशाहों से मिलने की उनको इजाजत नहीं हैं।
लोकशाही के नाम पर तानाशाही चला रहे कुछ मुट्ठी भर शासकों की गुंडागर्दी हमें मंजूर नहीं है, हमने गुजरात के महामहिम राज्यपाल माननीय ओ. पी. कोहली जी से इस बारे में शिकायत की है, आने वाले दिनों में गुजरात के सभी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार साथ मिलकर इस इस गैरकानूनी प्रवेश प्रतिबंध का विरोध करेंगे।