लोक-जंग
गुजरात में लोकसभा सीटें जीतने के लिए केजरीवाल को पार्टी नेताओं के आचरण और संगठन में सुधार करना होगा, आम आदमी पार्टी में जितने नेता हैं उतने ही विभाजन भी हैं।
दिलीप पटेल
अहमदाबाद, 8 सितंबर 2023
2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 42 लाख वोट हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी उतने ही वोट लोकसभा चूनाव में लेगी कि नहीं वह एक सवाल पैदा कर रहा है। जीतने नेता ईतने मतभेद हैं। विधानसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण में 70 राजनीतिक दलों के कुल 1,621 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। जिसमें आम आदमी पार्टी के कुछ उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। इसके बाद से ही विवाद चल रहा है। पार्टी अध्यक्ष को हटाए जाने के बाद विवाद और भी गहरा गया है।
सबसे पहले मुख्यमंत्री के तौर पर ईशुदान गढ़वी के नाम की घोषणा के बाद से ही बड़े विवाद शुरू हो गए थे। उनमें से एक थे इंद्रनील राजगुरु है। उन्होंने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गये। ऐसे विवाद आज भी जारी हैं। ये मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी रहने वाला है। क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी पार्टी को मुख्यमंत्री तय करने का अधिकार नहीं है। निर्णय न लेना निर्वाचित विधायकों का अधिकार है। वही बात गुजरात कि जनताने साबित कर दी है।
विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष गोपाल इटालिया को निकाला गया। दिल्ली के आदेश पर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और पराजित उम्मीदवार ईशुदान गढ़वी को अध्यक्ष पद पर बैठा दिया गया। गोपाल को गुजरात से निकाल कर महाराष्ट्र में फेंक दिया गया है। तब से वे परेशान हैं। बीजेपी और कांग्रेस में जितने गुट हैं, उससे ज्यादा आम आदमी पार्टी में फूट है। जीतने सिर पर बाल हैं, ईतने विचार है। कांग्रेस में भी इतना नहीं । आम आदमी पक्ष को गुजरात में टीके रहना है तो लोकशाही तरीके से काम करना होगा। कांग्रेस और आम आदमी पक्ष में फर्क वहीं होवा चाहीये। मगर, जब चाहे पक्ष के अध्यक्ष को निकाल दो, और जब चाहे बिठादो, एसा 13 सालोसे चल रहा है।
पक्ष के अध्यक्ष ईशुदान गढ़वी अभी भी मुख्यमंत्री बनने के सपने में जी रहे हैं। वे कार्यकर्ताओं का फोन तक नहीं उठाते। उनके निजी सहायक को एक दिन में 500 कॉल आते हैं। कई बार सहायक फोन भी नहीं उठाते। गढ़वी से लोग नाराज हैं, इसलिए इस्तीफे का सिलसिला शुरू हो गया है। सभी कोंग्रेस कि और जा रहे है। अब कई लोग इस्तीफा देने वाले हैं। लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही इस्तीफों की रफ्तार बढ़ना तय है।
आम आदमी पार्टी ईशुदान से जवाब और जवाबदेही मांग रही है। इसलिए गढ़वी ने पूरे राज्य में होद्दा बटोरने की दुकान खोली है। रोजाना 500 से 600 पोस्ट ऑफर की जा रही हैं। जो पद मांगता है उसे पद दे दिया जाता है। वर्षो से पक्ष के लिये काम करने वाले लोगो को साबरमती नदी के पानी की तरह बहा दिया जा रहा है।
आम आदमी पक्ष का बदा कार्यक्रम 16 सितंबर 2023 को होनी की पूरी संभावना है। 2 लाख कर्मचारियों की सभा हो सकती है। ईस लिए भर्तियां निकाली जा रही हैं। अब 52 हजार बूथों पर नियुक्ति होगी।
500 से ज्यादा लोग इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। विधानसभा चनाव में 40 हजार से ज्यादा वोट पाने वाले भी अब पार्टी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वह भी ईसुदान के कारण। क्योंकि ईशुदान का मन और हृदय अहंकार से भरा हुआ है। वे पार्टी ऐसे चला रहे हैं जैसे कोई टीवी शो चला रहे हों। मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाने के बाद भी उनका नशा नहीं उतर रहा है। यह लत लोकसभा चुनाव तक पार्टी को डुबा देगी।
गुजरात की जनता कांग्रेस नहीं आम आदमी पार्टी चाहती है लेकिन इसुदान गढ़वी ऐसा नहीं चाहते। अगर चाह ते होते तो किशोर काका को निकाला नहीं जाता।
विधानसभा में टिकट बेचने जैसा काम अब लोकसभा चुनाव में भी होगा।
पार्टी में नेतृत्व नहीं बल्कि दबंगई है। ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल को अब गुजरात में कोई दिलचस्पी नहीं है। अन्यथा, इसे बिल्कुल भी न चलाते। दिल्ली को नहीं पता ऐसा नहीं है, लोगों ने दिल्ली जाकर शिकायत की है।
2022 विधानसभा चूनाव में 50 सीटें मिल सकती थीं, लेकिन 6 सीटों पर संतोष हुआ है। अव शेखचल्ली जै से लोग, लोकसभा में 13 सीटें जीतने का सपना देख रहे हैं। जो खुद नहीं जीत पायें है।
ईशुदान गढ़वी ने अभी अपरिपक्व राजकीय बयान दिया था कि गुजरात में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा जाएगा। तब गुजरात कांग्रेस ने इसे खारिज कर दिया था। कांग्रेस के साथ आदमी पार्टी ने 40 फीसदी टिकट मांगी थी। अब आम आदमी पार्टी कांग्रेस से लोकसभा में 50 फीसदी सीटें मांगने की फिराक में है। ऐसे राजनीति कि जाती है?
जब विधानसभा में हार हुई तो चार नेताओं ने मिलकर समीक्षा की। प्रदेश स्तरीय कार्यकारिणी को नहीं बुलाया गया है। अगर हार के कारण पता होता तो हारे हुए नेता को पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया जाता। 10-12 साल के जितने भी लोग थे, वहीं नाराज है। किशोर देसाई जैसे गांधीवादी और आम आदमी पार्टी में अपनी पेंशन और पीएफ के पैसे देने वाले नेता को आखिरकार तंग आकर इस्तीफा देना पड़ा। अक्सर उनको अपमान किया जाता था। इससे पहले आम आदमी पार्टी के 5 अध्यक्षों को अपमानित कर निष्कासित किया गया था। किशोर काका और गोपाल इटालिया के साथ भी यही हुआ। किशोर देसाई से कहा जाता था कि आप को पता नहीं है। उन्होंने दो महीने पहले इस्तीफा दे दिया था।
गढ़वी और उनके साथ अन्य 4 नेता पार्टी के मालिकों की तरह काम कर रहे हैं। किसी की नहीं सुन रहे। किसी से बात न करने का विचार नेताओं के दिमाग में भर गया है।
गुजरात की जनता अब बीजेपी और कांग्रेस से तंग आ चुकी है। गुजरात की जनता गैर-बीजेपी सांसदों को लोकसभा में भेजना चाहती है। लेकिन आम आदमी पार्टी यह समझने को तैयार नहीं है।
गुजरात के प्रभारी गुलाबसिंह, मनोज पनारा, संदीप पाठक, गोपाल इटालिया और गढ़वी की पक्षपात में गंदी भूमिका है। चांडाल चौकड़ी पार्टी की संपत्ति छीन रही है। 7 संगठन मंत्री की नींव थी। फिलहाल 7 झोन के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जिसमें रामभाई धाडुक, अजीत लोखिल, निमिषाबेन खूंट, हसमुखभाई पटेल, रमेश नभानी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है, उन्हें परेशान किया जाता है। मोर्चे के पदाधिकारी खुश नहीं हैं। हर कोई मोके का इंतज़ार कर रहा है। ज्यादातर लोग पार्टी छोड़ने को तैयार हैं।
मुख्यमंत्री मनोज शोरेठिया ने स्वयं कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का अपमान करते रहते है। अभद्र बातें कीं बनाता है अपमानित करता है। कार्यकर को धमकाते हैं, मानो वह कोई कर्मचारी हो। कार्यकर के साथ ऐसा व्यवहार करता है, मानो वे वेतनभोगी कर्मचारी हों। यदि महामंत्री ही ऐसा कर रहे हैं तो फिर कार्यकर्ता किससे आस लगाएं। संगठन इस तरह काम नहीं करता। कार्यकर्ता ईमानदार हैं। ऐसे लोग भी थे जो घर के पैसे पार्टी को देते थे। वे अब थक गये हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कार्यकर्ताओं को एक रुपया भी नहीं दिया. पार्टी को बचाए रखने के लिए कार्यकर्ताओं ने अपनी पूंजी खर्च की है। वह पार्टी अध्यक्ष समझने को तैयार नहीं हैं।
अगर केजरीवाल ने जल्द से जल्द प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव नहीं किया तो लोकसभा चुनाव में पार्टी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। आम आदमी पार्टी में कभी भी पदाधिकारियों की नियुक्ति या पार्टी अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ है। लोकतांत्रिक विरोधी कार्रवाई होती है।
गुजरात की जनता आम आदमी पार्टी को चाहती है। वे बीजेपी और कांग्रेस को हटाना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी के नेता इस मौके को लपकने को तैयार नहीं हैं। तुमखी और अहंकार भरा हुआ है।
7 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। इनमें से कुछ अध्यक्ष दूसरे दलों के नेताओं से जुड़े हुए हैं। चुनाव हारने के बाद उन्होंने पार्टी के राज्यों का सह-प्रभारी बना दिया गया। उनमें से कुछ और पक्ष के साथ भी सहज संबंध बनाए रखते हैं। ये सब पार्टी को डुबो रहे हैं।
अध्यक्ष पद से हटाने के बाद गोपाल इटालिया, मनोज पनारा और ईशुदान से नाराज हैं। पक्ष को ख़तरा है। सूरत के कई नगरसेवक परेशान हैं। वे शर्मिंदगी से पार्टी के साथ बने रहते हैं। ईशुदान गढ़वी जिला अध्यक्षों का फोन नहीं उठाते हैं। तो फिर आम लोगों के फोन क्यों उठाये। फिर संगठन कैसे चलेगा? इस बात पर अरविंद केजरीवाल सोचने के पात्र हैं।
उत्तर गुजरात के कद्दावर नेता भेमाभाई चौधरी ने ईसुदान की वजह से इस्तीफा देकर पार्टी छोड़ दी है। ऐसे दो दर्जन और पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं।
अरविंद केजरीवाल को गुजरात आकर पार्टी को ठीक करना होगा। विधानसभा चुनाव के बाद भले ही केजरीवाल गुजरात नहीं आए, लेकिन अब समय आ गया है कि अगर बीजेपी को हराना है और कांग्रेस को हटाना है तो केजरीवाल को गुजरात आना होगा। संगठन दिल्ली में बैठकर नहीं चल सकता। गुजरात की धरती पर आना होगा। अन्यथा हार निश्चित है।