राज कुमार, न्यूज क्लिक | 11 May 2023
क्यों ना इन दोनों राज्यों के सामाजिक सूचकांक, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और लोगों के जीवन-स्तर की तुलना कर ली जाए।
इन दिनों एक प्रोपेगेंडा फ़िल्म के चलते केरल चर्चा में है। केरल की छवि खराब करने की ये पहली कोशिश नहीं है बल्कि भाजपा और दक्षिणपंथी प्रोपेगेंडा मीडिया लगातार ऐसी कोशिशें करता रहता है। भाजपा केरल को आतंकवाद के गढ़ के तौर पर दिखाने की कोशिश करती है और गुजरात को विकास के मॉडल की तरह पेश करती है।
गौरतलब है कि केरल में वामपंथ की मजबूत पकड़ है और लंबे समय से सत्ता में भी रहे हैं। दूसरी तरफ गुजरात भाजपा और संघ की प्रयोगशाला रहा है और पिछले 27 साल से गुजरात में भाजपा की सरकार है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गुजरात से ही आते हैं। केरल बनाम गुजरात के इस मुद्दे को हमें तसल्ली से समझना होगा। तो क्यों ना इन दोनों राज्यों के सामाजिक सूचकांक, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और लोगों के जीवन-स्तर की तुलना कर ली जाए। ताकि केरल की “रियल स्टोरी” को आप देख सकें और गुजरात मॉडल का भी आकलन कर सकें। तो आइये, शुरु करते हैं और देखते हैं कि ये दोनों राज्य कहां खड़े हैं?
शिक्षा की स्थिति
सबसे पहले देखते हैं कि इन दोनों प्रदेशों में साक्षरता की क्या स्थिति है? गुजरात की साक्षरता दर 78% है जबकि केरल की साक्षरता दर 94% यानी देश में सबसे ज्यादा है। स्पष्ट है कि शिक्षा के मामले में केरल एक आदर्श राज्य है और गुजरात केरल के सामने कहीं भी नहीं ठहरता है।
अब इन दोनों राज्यों के स्कूलों की स्थिति को देखते हैं। देश में स्कूलों की स्थिति के बारे में शिक्षा मंत्री से राज्यसभा में सवाल पूछा गया। 14 दिसंबर 2022 को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका लिखित जवाब दिया। जिसके अनुसार गुजरात में वर्ष 2019 में शिक्षकों के 5,709 पद खाली थे जो वर्ष 2021 में बढ़कर 14,767 हे गये। यानी रिक्त पदों की संख्या में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई। दूसरी तरफ केरल में वर्ष 2019 में शिक्षकों के 5804 पद खाली थे जो संख्या वर्ष 2021 में घटकर 1815 रह गई। गौरतलब है कि इन तीन सालों में गुजरात में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है जबकि केरल में तीन गुना कमी आई है। केरल में शिक्षकों के 2.63% पद खाली हैं जबकि गुजरात में 5.84% पद खाली पड़े हैं।
शिक्षा मंत्रालय, स्कूल एवं साक्षरता विभाग के आंकड़ों के अनुसार केरल के 1676 सरकारी स्कूलों में पुस्तकालय नहीं है जबकि गुजरात के 21,234 सरकारी स्कूलों में पुस्तकालय नहीं है। केरल के 1728 स्कूलों में बिजली नहीं है जबकि गुजरात के 20,885 सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं है। केरल के 1724 स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है जबकि गुजरात के 21,257 स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है। आंकड़े स्पष्ट कर रहे है कि केरल ने शिक्षा को प्राथमिकता पर लिया है जबकि गुजरात में शिक्षा की स्थिति काफी लचर है। शिक्षा के स्तर में ये भाजपा के पिछले 27 साल का रिपोर्ट कार्ड है।
स्वास्थ्य की स्थिति
अब नज़र डालते हैं कि दोनों राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या स्थिति है? 7 फरवरी 2023 को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीय ने देश भर के स्वास्थ्य ढांचे का राज्यवार ब्योरा प्रस्तुत किया था। जिसके अनुसार केरल के 14 ज़िलों में 48 ज़िला अस्पताल हैं जबकि गुजरात के 33 ज़िलों में मात्र 20 ज़िला अस्पताल हैं। केरल ज़िलों की संख्या की तुलना में ज़िला अस्पतालों की संख्या लगभग तीन गुना है जबकि गुजरात के हर ज़िले में एक ज़िला अस्पताल तक नहीं है।
भारत के जनगणना विभाग के अनुसार वर्ष 2023 में गुजरात की अनुमानित जनसंख्या 7,04,00,153 और केरल की अनुमानित जनसंख्या 3,46,98,876 है। गुजरात में शहरी और ग्रामीण कुल मिलाकर 11,297 सब-सेंटर, पीएचसी और सीएचसी हैं। यानी प्रति 6,231 लोगों पर इन तीनों में से एक प्रकार का हैल्थ सेंटर है। केरल में शहरी और ग्रामीण कुल मिलाकर 6,586 सब-सेंटर, पीएचसी और सीएचसी हैं। यानी प्रति 5,268 लोगों पर एक हैल्थ सेंटर उपलब्ध है। स्वास्थ्य ढांचे के तौर पर भी गुजरात केरल से काफी पिछड़ा हुआ है।
पोषण की स्थिति
नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार गुजरात में शिशु मृत्यु दर 31.2 है जबकि केरल में 4.4 है। गुजरात के 6 महीने से 5 साल आयु वर्ग के 79.7% बच्चे ख़ून की कमी के शिकार हैं जबकि केरल में ये आंकड़ा 39.4% है। गुजरात की 15-49 वर्ष आयु वर्ग की 65% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं जबकि केरल में ये आंकड़ा 36.3% है। केरल की 31.4% गर्भवती महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं जबकि गुजरात में ये आंकड़ा केरल से दोगुना है। गुजरात की 62.6% गर्भवती महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं। केरल के 19.7% बच्चे अंडरवेट हैं जबकि गुजरात में 39.7% बच्चे अंडरवेट हैं जो राष्ट्रीय औसत 32% से भी काफी कम है। गुजरात में 6 माह से 2 साल आयु वर्ग के मात्र 6% बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है केरल में ये आंकड़ा 23.5% है और राष्ट्रीय औसत 11.3% है। आंकड़े स्पष्ट कर रहे हैं कि पोषण के मामले में भी केरल गुजरात से कहीं आगे हैं।
महिलाओं की स्थिति
पूरे देश में महिला लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है। मतलब, लड़िकयों को बोझ समझा जाता है और पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दिया जाता है। हमें महिलाओं की स्थिति को समझने के लिए ये जानना होगा कि केरल और गुजरात में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात की स्थिति क्या है? गुजरात में महिला-पुरुष लिंगानुपात 919 है जो राष्ट्रीय औसत 940 से भी कम है। जबकि केरल का लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा 1,084 है। यानी गुजरात में प्रति 1000 पुरुषों की तुलना में मात्र 919 महिलाएं हैं, जबकि केरल में प्रति 1000 पुरुषों की तुलना में 1084 महिलाएं हैं। लिंगानुपात के मामले में केरल एक आदर्श राज्य है।
गुजरात में महिला साक्षरता दर 76.5% है जबकि केरल में महिला साक्षरता दर 98.3% है। गुजरात की मात्र 30.8% महिलाएं ही ऐसी हैं जिन्होंने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है जबकि केरल में ये आंकड़ा गुजरात से दोगुना है। केरल की 61.1% महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं।
अगर महिलाओं की शादी की उम्र की बात करें तो इस मामले में भी गुजरात केरल के सामने पिछड़ जाता है। गुजरात की 20-24 वर्ष आयु वर्ग की 21.8% महिलाओं का कहना है कि उनकी शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी गई। केरल में ये आंकड़ा 6.3% है। गुजरात की मात्र 48.8% महिलाओं के पास खुद का मोबाइल फोन है जबकि केरल में 86.6% महिलाओं के पास खुद का मोबइल फोन है। आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात की बजाय केरल में महिलाओं की स्थिति कहीं बेहतर है।
जीवन की गुणवत्ता
हमें ये भी देखना होगा कि इन दोनों ही राज्यों में जीवन का स्तर क्या है? लोगों के रहन-सहन का स्तर क्या है? गुजरात के मात्र 74% घरों में ही सेनिटेशन की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं जबकि केरल के 98.7% घरों में सेनिटेशन की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। गुजरात के मात्र 39% परिवार ऐसे हैं जिनके किसी सदस्य का स्वास्थ्य बीमा हुआ है जबकि केरल के 51.5% परिवार ऐसे हैं जिनमें किसी सदस्य का स्वास्थ्य बीमा हुआ है। गुजरात के 66.9% घरों में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल होता है जबकि केरल के 72.1% घरों में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल होता है।
विभिन्न क्षेत्रों के सरकारी आंकड़े ही साबित कर रहे हैं कि केरल वास्तव में विकास का एक मॉडल है और गुजरात को जबरन मॉडल की तरह पेश किया जा रहा है। असल में गुजरात एक विकास का मॉडल नहीं बल्कि भाजपा और संघ की हिंदुत्व की प्रयोगशाला है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)