लखन मुसाफिर, नर्मदा जिले के एक महत्वपूर्ण ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता को तड़ीपार का आदेश दिया गया है। उन्हे नर्मदा, भरूच, तापी, छोटाउदेपुर और वड़ोदरा इन पाँच जिलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।
लखनभाई के विरुद्ध में किए गए आरोप न सिर्फ हास्यास्पद रूप से गलत है, बल्कि कोई सबूत नहीं, कोई गवाह नहीं, कोई कानूनी तर्कपेशी नहीं, कोई जाँच नहीं, कोई ढंग की सुनवाई नहीं और फिर भी नर्मदा जिला उप-विभागीय मेजिस्ट्रेट ने पुलिस के द्वारा उनकी फ़रियादपेशी में प्रस्तुत किए गए जूठ को सही मानकर, उन्हे इस आदेश को जारी करना उपयुक्त माना। विधिवत कानूनी प्रक्रिया को दर किनार करते हुए उन्हो ने कहा की लखन मुसाफ़िर को निर्दोष न माना जाए क्योंकि उन्होने स्वयं को निर्दोष साबित नहीं किया है।
ऐसे ही आदेश सरकार और कानूनी प्रक्रियाओं को उपहास के पात्र बनातें है। लखन मुसाफिर के विरुद्ध में हुए आरोप में शामिल है : लोगों को उकसाना, “हिंसक” प्रवृत्तिओं मे संलग्न होना, हथियारों का वहन करना, शराब का व्यापार करना। इससे ज्यादा बेतुका/विवेकहीन क्या हो सकता है? इतना ही नहीं, प्रशासन इस आदेश को जारी करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार लगता है क्योंकी एक तरफ पूरे भारत के न्यायालय सिर्फ अत्यावश्यक मामलों पर ही कार्यशील है, ओनलाईन सुनवाई चला रहें है आदि। और इन अधिकारी श्री को इस मामले में भौतिक सुनवाई जारी करना योग्य लगा, पर अभियोजक पक्ष से प्रमाण के लिए पूछा नहीं।
लखन मुसाफ़िर 40 वर्षों से स्थायी कार्यकर्ता है। उन्होने सन 1982 में विनोबा भावे के पवनार आश्रम जाने के लिए पहेले अपनें घर और शिक्षा त्याग दिए थे और बाद में गौहत्या के विरोध में चले सत्याग्रह में भाग लिया था । गाय और गौ-वंश के कृषि में महत्व को समझकर उन्हो ने स्वयं को प्रकृतिक कृषि, जीविका के लिए शरीरश्रम, टिकाऊ जीवनशैली, बायोगैस संयंत्र निर्माण, निर्माण श्रमिकों की शिक्षा आदि में निमज्जित करने का निर्णय लिया। इसी के साथ उन्होने अपने परिवार को बताया था की वें सिर्फ अपने शरीरश्रम से हुई जीविका पे ही रहेंगे और उनके परिवार से एक पैसा भी नहीं लेंगे और परिवार की जायदात में से उन्हे कोई हिस्सा नहीं चाहिए।
पूरे जीवन भर लखन भाईने अपने पे और अपनी जीवनशैली पे प्रयोग किए है। जैसे की, वें सिर्फ स्वयं के प्रति दिन के शरीरश्रम से कमाए हुए का ही उपभोग करेंगे, वें सिर्फ उन्ही जगहों पर जाएंगे जहाँ वे साइकल से जा पाए आदि। वो लखन भाई ही थे जिन्हो ने 1990 दशक के अंत की शुरुआत में प्रसिद्ध हुए प्रकृतिक गुड़ का निर्माण शुरू किया था। किसानों को अपने कृषि उत्पादनों से अच्छी आय के लिए उत्पादों के मूल्यवर्धन, खुद के लिए हल्दी उगाना और प्रोसेस करना और एसे अनेक उत्पादनों के लिए उन्होने प्रोत्साहित किया है। और प्रशासन चाहता है की ऐसे मानव को हम शराब बेचनेवाला कैसे मान ले !
पिछले 10 वर्षों में लखनभाई ने नर्मदा जिले के केवडिया क्षेत्र में आदिवासियों की जागरूकता के लिए अथक प्रयास किया है। वह केवडिया, कोठी, नवागाम, वागडिया, लिमडी और गोरा के 6 गांवों के लोगों साथ हर समय-हर मुश्किल में खड़े रहे है. जिन्होंने अपनी जमीन खो दी, लेकिन परियोजना प्रभावित के रूप में पहचाने गए है। उन्होंने गरुड़ेश्वर वियर में डूब में जाने वाली आदिवासीयों की जमीन बचाने की भरसक कोशिशे की। साथ ही उन्होंने सरदार पटेल की प्रतिमा से प्रभावित किसानों की मदद करने की कोशिश की।
नर्मदा और अन्य जिलों में आदिवासी छात्र शिक्षा के खराब बुनियादी ढांचे से पीड़ित हैं। लखनभाई ने छात्रों के लिए मुफ्त मैथ्स, साइंस ट्यूटोरियल शुरू किया है, जिससे 10 वीं ग्रेडर्स के छात्रों को काफी फायदा हुआ है। स्थानिक लोगो में विश्वास रख, उनके उत्तम गुणों-कौशल को निखारना यही उनका गुण है.
यह हदपार करने के आदेश से न सिर्फ लखन मुसाफिर को डराने और परेशान करने की कोशिश की गई है, मगर यह नर्मदा जिले के आदिवासियों को चुप कराने की कोशिश है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है। सरकार लखनभाई और वह जिन आदिवासी लोगों के साथ काम करते है- उनका प्रतिनिधित्व करते है, उन्हें डराने में कभी सफल नहीं हो सकती । अन्याय के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।
- ज्योतिभाई देसाई
- डैनियल मज़गाँवकर
- रजनी दवे
- स्वाति देसाई
- आनंद मज़गाँवकर
- महेश पंड्या
- देव देसाई
- पार्थ त्रिवेदी
- रोहित प्रजापति
- कृष्णकांत चौहान