मोदी का जादुं, गुजरात में थे तब मसाला फसलो 3 गुना पैदा हुंआ, दिल्ही गये तबसे आज तक आधा हो गया

गांधीनगर, 15 नवम्बर 2020

गुजरात में, किसानों की प्रवृत्ति से लगता है कि स्वाद फसको में गिरावट आ रही है। पिछले 10 वर्षों से मसाला फसलों का उत्पादन निलंबित है। मसाला फसलों मिर्च, जीरा, लहसुन, अदरक, हल्दी, इसबगोल, अजमो, सुवा, धनिया, मेथी, सौंफ जैसी फसलों को मसाला फसल माना जाता है। जिसका उत्पादन पिछले 10 वर्षों से समान है। गुजरात में अंडे और मांस की खपत में वृद्धि हुई है, मसाला फसलों के क्षेत्र को निलंबित है। मोदी मुख्य मंत्री बने तब अचानक खेतो में मसाला फसल बढने का चमत्कार कर रहां था। अब ऐसा नहीं है। मोदी के गुजरात को छोडने के बाद आधा हो गया है।

रोपण क्षेत्र

खेती का क्षेत्रफल 2010-11 में 4.96 लाख हेक्टेयर था। जो कि 2019-20 में बढ़कर 7.09 लाख हेक्टेयर हो गया है। इस प्रकार खेती के अंतर्गत क्षेत्र में 42-43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जब तक नरेंद्र मोदी गुजरात छोड़कर मुख्यमंत्री बने, तब तक खेती का रकबा दोगुना हो गया था। 2.40 लाख टन के मुकाबले 10.29 लाख टन। आज भी, कृषि शोधकर्ता इस बात का कोई हल नहीं निकाल पाए हैं कि इस तरह के आंकड़े क्यों आए, या 329 प्रतिशत की वृद्धि किस कारण हुई। क्यों आंकड़े जादुई बन गए। मोदी के गुजरात छोड़ने के बाद, गुजरात में मसाला फसलों के खेत लगातार बढ़ रही है, लेकिन उत्पादन में गिरावट आई है। किसान नुकसान की खेती नहीं करते। आंकड़े जादुई हो सकते हैं। राजनेताओ कीं तरह किसान जादू नहीं करते। मसाले की फ़सलें सबसे अधिक दामों पर बेची जाती हैं इसलिए अगर थोड़ा सा भी बदलाव किया जाए तो किसानों की आय को किताब में दोगुना किया जा सकता है।

उत्पाद

नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के साथ, मलासा फसलों का उत्पादन जादुई रूप से बढ़ने लगा। 2012-13 में 1.70 लाख टन मसालों का उत्पादन बढ़कर 12.54 लाख टन हो गया। इस प्रकार 9 गुना उत्पादन आंकड़ों में दिखाया गया था। जैसे ही मोदी ने गुजरात छोड़ा, मसालों का उत्पादन कम होने लगा। 7.67 लाख टन मसालों का उत्पादन किया गया। आज भी, उत्पादन 10.96 लाख टन है। मोदी के चमत्कारी आंकड़ों के अनुसार, आज खेतों में 2.5 मिलियन टन मसालों की कटाई की जानी थी। लेकिन वैसा नहीं हुआ।

20 साल से उत्पादकता वैसी

मसाले की फसल की उत्पादकता आज उतनी ही है जितनी 1999 में थी। इस प्रकार 20 वर्षों में उत्पादकता क्यों नहीं बढ़ी है, इस सवाल को अब सरकारी आंकड़ों की मदद से उठाया जा रहा है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ने के बजाय घट रही है। इन अधिशेष मसाले वाली फसलों की औसत उत्पादकता 2010-11 में 2 टन प्रति हेक्टेयर से घटकर 2019-20 में 1.55 टन हो गई है। यह सरकार, किसानों और कृषि विश्वविद्यालयों के लिए एक चुनौती है। उनकी हार मान ली। उत्पादकता में गिरावट को जलवायु परिवर्तन और उच्च उपज वाली किस्मों को खोजने में असमर्थता के कारण माना जाता है। उत्पादकता 20 प्रतिशत कम है। जिसे वास्तव में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत की दर से बढ़ना था। उत्पादकता जो 4 टन होनी चाहिए थी, वह 1.55 टन हो गई है। इस प्रकार किसानों को कड़ी चोट पहुंच रही है।