अब मोदी की दही हांडी कौन तोड़ेगा ?

दिलीप पटेल, अहमदाबाद, 26 अगस्त 2022

बीजेपी में अब जो कुछ हो रहा है वह 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. जिसका असर हिंदू राजनीति पर पड़ रहा है. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल समेत 140 संघ संगठन खामोश हैं. उन्हें हिंदू धर्म के बारे में बात करने से मना किया गया है. तो यह प्रवाह अब अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद की ओर जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद विश्व हिंदू परिषद (एएचपी) से अलग हुआ  संगठन है.

नितिन गडकरी अभी का उदाहरण है. आखरी उदाहरण नहीं है. नितिन गडकरी एएचपी के डो.प्रविण तोगडिया के आमंत्रण पर नागपुर में एक कार्यक्रम में गये थे. नितिन गडकरी इससे पहले नागपुर में एएचपी के हांडी कार्यक्रम में कभी नहीं गए. सड़क एवं परिवहन मंत्री गडकरी और एएचपी के संस्थापक डॉ. प्रवीण तोगड़िया सालों से दोस्त हैं. तोगड़िया उन्हें हर साल हांडी कार्यक्रम में आने का न्योता देते थे. लेकिन गडकरी नहीं जा रहे थे. ऐसा पहली बार हुआ है कि गडकरी गए हैं. इसके अलावा भाजपा के 3 विधायक व नगरसेवक भी दही हांडी कार्यक्रम में गए. एएचपी के हांडी उत्सव में संघी अधिक थे. जो संघ की मंजूरी लेने से पहले नहीं आए हैं.

तोगड़िया की हांडी में न केवल संघ, भाजपा बल्कि शिव सेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कई नेता मौजूद थे.

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भाजपा संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया है. इसलिए की  प्रधानमंत्री पद के लिए प्रतिद्वंद्वी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शीर्ष नेताओं ने शायद इस पर सहमति जताई होगी. वैसे भी संघ से केन्द्र की सरकार पूछती भी नहीं है.

बीजेपी के वरिष्ठ मंत्रियों से नितिन मील रहे हैं. वे शीर्ष नेताओं से मिल रहे हैं. नितिन गडकरी बयानों से सुर्खियां बटोर रहे हैं. लोग फायदा उठा रहा है, जिससे पार्टी और केंद्र सरकार की पोल खोल  रही है. उन्हें एक संघ के रूप में देखा जा रहा था.

गडकरी ने देश के राजमार्गों के निर्माण में किसी अन्य मंत्री की तुलना में अधिक पैसा खर्च करने का ठेका दिया है. गुजरात की तरह, मोदी के भी संघ के साथ मिलकर मंत्रियों को गिराने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

संघ और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं. नड्डा को नरेंद्र मोदी ने नियुक्त किया है. नड्डा को संघ से कोई नाता नहीं है.

भाजपा पार्लामेन्टरी बोर्ड बनाई गई है. जिसमें योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान, नितिन गडकरी नहीं हैं. ये तीनों 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के दावेदार हैं. उनके निष्कासन के साथ, केवल अमित शाह और नरेंद्र मोदी ही प्रधान मंत्री पद के दावेदार के रूप में बचे हैं. इसलिए संघ मान भी ले, तो अब पार्टी की इस नीति को बदलना संभव नहीं है.

भाजपा में जो कुछ भी होता रहा है वह 2024 को ध्यान में रखकर किया जाता है. जो गुजरात समेत राज्यों के चुनाव में भी हो रहा है. यह और सबूत बताते हैं कि आरएसएस की वात अब भाजपा में नहीं चल रही है. गडकरी संघ के खास चहेते हैं. नितिन गडकरी कट जाते हैं.

नड्डा और संघ की अच्छी ट्यूनिंग नहीं है. यही सबूत है जो बोलता है. अब संसदीय बोर्ड नरेंद्र मोदी के पास आ गया है. कोई भी उम्मीदवार नितिन गडकरी के समान नहीं था. राजनाथ भी नहीं.

भारत के लोगों ने बीजेपी और संघ को दिखाने का काम हाथ में लिया है.

दावा किया जा रहा है कि नागपुर में दही हांडी कार्यक्रम में 20 हजार लोग मौजूद थे. जिसमें शिवसेना नेता भी तोगड़िया के साथ थे. जो डो.तोगड़िया की बढ़ती ताकत को दर्शाता है. शायद तोगड़िया को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उन्हें संग सिटी नागपुर में ऐसा समर्थन मिलेगा.

देश में कहीं भी ए. एच. पी. की सभा, रैली होती है, त्रिशूल बांटा जाता है, वहां हिंदू समुदाय उमड़ पड़ता है. जो भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है. यह संघ के लिए भी चिंता का विषय है.

एएचपी अब बीजेपी, संघ और विहिप से आगे निकल ने की कोषिश मे है. स्थानीय हिंदुओं का नेतृत्व अब एएचपी के साथ आ रहा है. गुजरात के लिंबडी जैसे छोटे से कस्बे में भाजपा सरकार के एक मंत्री और ए. एच. पी. की रैली समानांतर थी. लेकिन ए. एच. पी की रैली में 41 हजार लोग थे. प्रधान किरीट राणा की रैली में उनके आधे लोग भी नहीं थे. यह बीजेपी के लिए चिंता का विषय है क्योंकि एक तरफ आम आदमी पार्टी और ए. एच. पी के साथ मुकाबला गुजरात विधानसभा में हो रहा है.

गुजरात में हिंदू आंदोलन के अंतिम 6 महीनों में, एएचपी की ताकत बढ़ गई है. देश के हिंदू नेतृत्व का अब तबादला किया जा रहा है.

अब हिंदू प्रयोगशाला का मुख्यालय अहमदाबाद में 4 स्कूटर रैली ए. एच.पी. ने निकाली थी. जिसमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग आए थे. वी.एच.पी. की रेली से ज्यादा.

गुजरात के दाहोद में, सभी तालुकों में ए. एच. पी. की रैली का आयोजन किया गया. 400 किलो मीटर की रेली में हर गांव में बड़ा पैमाने पर लोक आये थे. गुजरात के लोगों का समर्थन मिलने के बाद से दिल्ली से भाजपा नेताओं का आना-जाना तेज हो गया है. बीजेपी के लिए गंभीर बात यह है कि एएचपी की इस तरह की रैलियों में बड़ी संख्या में नए युवा आ रहे हैं.

अयोध्या मार्च डो.तोडगिया ने किया था, तब मंदिर और सरकार को कार्यक्रमों की घोषणा करनी पड़ी थी, अब स्थिति यह हो गई है कि इसे देश में हर जगह किया जाना होगा.

1992 के बाद विहिप सक्रिय नहीं था, अधिक सक्रिय ए. एच. पी. है, तोगड़िया को भी नहीं पता था कि लोगों को इतना समर्थन मिलेगा. हिंदू आंदोलन का काम संघ ने 97 साल तक किया. अब तोडगिया आ गया है. यह हिंदू विचारधारा के खिलाफ संघ की नीति के कारण हुआ. संघ ने हिंदू लोगों की  विश्वसनीयता खो दी है.

रायपुर, छत्तीसगढ़ में त्रिशूल देते हुए. एच. पी. का कार्यक्रम था. जिसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे. यह आज तक का इतिहास रहा है कि त्रिशूल, गुजरात में देने के लिए बड़े कार्यक्रम हुए हैं. लेकिन यह पहली बार है कि इतने बड़े पैमाने पर कार्यक्रम गुजरात के बाहर आयोजित किया गया है.

अगर विश्व हिंदू परिषद को अभी कार्यकर्ताओं की जरूरत है, एएचपी ने देने की क्षमता पैदा की है.

जनवरी में नैनीताल के रामपुर में, एक ही तालुका में 70 गाँव में, कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ता से ज्यादा एचपी के पास है.

गुजरात में 1990-95 में. विहीप का प्रभुत्व था अब एएचपी की ओर जा रहा है. अब पार्टी के सभी नेता ए. एच. पी. के नेताओं से संपर्क बढ़ा रहे हैं.

आर. एस. एस. उन्होंने स्वयं सावरकर का नाम नहीं लेते थे.  डॉ तोगड़िया पहले से सावरकर को मानते है. संघ अब सावरकर का नाम ले रहे है.

गडकरी सक्षम हैं. इसलिए मोदी ने उन्हें परेशान करना नहीं छोड़ा है. गडकरी में अगले प्रधानमंत्री बनने की क्षमता है. इससे पहले प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, जिनमें प्रधानमंत्री बनने की क्षमता थी. उनका निधन हो चुका है. थोडे लोग एक्सीडेन्ट में मारे गये. डो. प्रवीण तोगडिया का भी कार एक्सीडेन्ट करवाने की प्रयास किया जा चूका है.

कई नेता साईड लाईन कर दिये गये है. अडवानी की तरह. अब गडकरी की वारी आई है. कल कोई भी हो सकता है, जो सच बोलेगा वह सीधा घर जायेगा. भाजपा में अभी जो भी है, वह सच नहीं कह रहे है.

गडकरी जो कहते हैं वह देश हित में कहते हैं और करते हैं. गडकरी ने कहा था कि देश में सरकारें समय पर निर्णय नहीं लेती हैं, यह एक बड़ी समस्या है. नितिन गडकरी ने सरकार की सबसे बड़ी खामी बताई. नागपुर में एक कार्यक्रम में कहा अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और दीनदयाल उपाध्याय की वजह से सत्ता आई है. गडकरी ने अटल बिहारी बाजपेयी का हवाला देते हुए कहा कि अंधेरा मिट जाएगा, सूरज निकलेगा और कमाल एक दिन खिलेगा. गडकरी का सीधे तौर पर कहना था की अकेले मोदी की वजह से सत्ता नहीं आई है.

इस बयान से मोदी ने गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटा दिया था. इससे पहले उन्होंने राजनीति छोड़ने की बात कही थी. आज की राजनीति सामाजिक परिवर्तन का साधन बनने से ज्यादा सत्ता में बने रहने की है, गडकरी ने तो कहा था. इस तरह मोदी ने एक अच्छे नेता का शिकार बनाया है. प्रमोद महाजन, बाजपेयी और आडवाणी सच्चे लोकतंत्र के स्थंभ थे. अब पूरे भारत में लोकतंत्र के लिए खतरा है. सत्य बोलने वालों पर विपत्ति आती है. भारतीय राजनीति में ऐसे करीब 300 नेता शिकार बन चुके हैं. सोनिया गांधी भी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता भी.

उन्होंने महाराष्ट्र में शिवसेना की सच्ची हिंदू सरकार को उखाड़ फेंका. विधायको गुजरात बुलाकर हिंदु सरकार को निकाला. मोदी ने गुजरात में महाराष्ट्र की तरह ही राजनीति करके केशुभाई के दूसरे कार्यकाल की सरकार को उखाड़ फेंका था. भले ही पहली सरकार शंकरसिंह वाघेला द्वारा गिराई गई थी. शंकरसिंह वाघेला और केशुभाई ने कहा था की मोदी ने पहली सरकार को गिराने का कारण दिया था. (विडियो भी है). मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने संघ को धूल चटवाई थी. अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर किया जा चुका है. मोदी ने संघ को बर्बाद कर दिया है. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कभी संघ के कार्यक्रम में चड्डी या पैंट पहनकर हाजिर नहीं रहे है.

मोदी ने सत्ता के लिए किसी भी चुनौती को काफी हद तक खत्म कर दिया है. आख़िरकार आडवाणी और गडकरी को भी, कोने में रख दीया है. संघ दुनिया के बड़े संगठन का दावा कर रहा है, मगर वो भी मोदी के कहने पर काम कर रहा है. कई सबूत है.

डो.तोगड़िया को विश्व हिंदू परिषद से निकाले जाने में अहम भूमिका निभाई थी. मोदी पर आरोप है कि उन्होंने तोडगिया को मारने के लिए हमला किया था.

अब वही डॉ. तोगड़िया संघ और मोदी को चुनौती दे रहे हैं. ए. एच. पी. अब आगे बढ़ रहे हैं. जनता का समर्थन मिला है.

संघ को दुनिया में एक प्रमुख राजनीतिक सामाजिक संगठन बनने में 100 साल लग गए. लेकिन तोगड़िया को अपना संघ बनाने में 10 साल नहीं लगें गे.

आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)

विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन RSS (नेशनल वालंटियर्स यूनियन) है. जो धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक है. 2025 में जब इसके 100 वर्ष पूरे होंगे, तब तक संघ की ताकत कम हो जायेगी.  इसकी स्थापना 1925 में मराठी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कि. आब हिंदुओं की रक्षा करने से ज्यादा राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं. तो संघ के कंई मुख्यमंत्री और देश के दो प्रधान मंत्री दीये हैं. डो.तोगडिया, आडवाणी और संजय जोशी को राजनीतिक रूप से काटकर संघ ने बहुत बड़ी गलती की है. क्योंकि आज संघ मोदी के खिलाफ नहीं बोल सकता है.

अब संघ नहीं बल्कि ए. एच. पी. हिंदू धर्म के बारे में बात करता है और हिंदू धर्म के बारे में कार्यक्रम देता है.

सरसंघचालक मोहन भागवत, पिछले नेताओं की तरह एक ब्राह्मण हैं. तोगड़िया ब्राह्मण नहीं हैं. वह एक लड़ाकू है. संघ के नेताओं की तरह कायर नहीं. जो चीन सरहद में आ रहा है फिर भी चुप है.

30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला भवन में शाम 5.10 बजे नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जो संघ के थे. एक सच्चे देशभक्त गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने RSS पर 1 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था.

आरएसएस की पहली शाखा में 5 लोग थे. आज देश में 60,000 शाखाएँ हैं, जिनमें प्रति शाखा औसतन 10 स्वयंसेवक हैं. दुनिया के 40 देशों में कुछ शाखा हैं. RSS दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी राज नैतिक संगठन है. आरएसएस की शाखाओं में कोई महिला नहीं है, क्योंकि उन्हें अनुमति नहीं है. सेविका समिति आरएसएस का हिस्सा नहीं है. नेहरू ने 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए आरएसएस को आमंत्रित किया था. मोदी नहीं बुला रहे है. बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं में अच्छा काम संघ करता है. लेकिन साम्प्रदायिक दंगों में उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है.

संघ प्रचारक को अविवाहित रहना है. लेकिन मोदी शादीशुदा हैं, फिर भी वे प्रचारक थे. भाजपा के प्रमुख नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रवर्तक रहे हैं. गुजरात में नरेंद्र मोदी के शासन के दौरान मुसलमानों की हत्या और बिलकिश बानो जैसी महिलाओं के बलात्कार के बाद 2002 से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन संघ ने किया है. अब मंच में 10,000 मुस्लिम हैं.

राष्ट्र ध्वज के रूप में, तिरंगे को पहले संघ द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी. 2023 में तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज बदल भी सकता है.