भावनगर दौरे पर प्रधानमंत्री, कांग्रेस ने पुराने वादों पर उठाए सवाल

भावनगर, 20 सितंबर 2025
प्रधानमंत्री शनिवार को भावनगर पहुँचेंगे। नगर निगम और स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनज़र उनका यह दौरा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री करोड़ों रुपये की नई योजनाओं और विकास कार्यों के विज्ञापन और वीडियो पेश करके जनता को साधने की कोशिश करेंगे।

कांग्रेस नेता शक्तिसिंह गोहिल ने प्रधानमंत्री के दौरे से पहले ही मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने 2006, 2012 और अन्य मौकों पर भावनगर में प्रधानमंत्री (तत्कालीन मुख्यमंत्री) द्वारा दिए गए भाषणों और वादों के वीडियो मीडिया के सामने पेश किए। इनमें भावनगर-दहेज-हंसोत बारह लेन सड़क, कल्पसर योजना और 2020 तक भावनगर को सूरत से सीधे जोड़ने वाले गोल्डन कॉरिडोर की घोषणाएँ शामिल हैं।

गोहिल ने कहा कि प्रधानमंत्री के भाषणों में दावा किया गया था कि भावनगर से सूरत की दूरी केवल 136 किलोमीटर रहेगी, दहेज-हंसो होकर 75,000 वाहन सीधे चलेंगे और एक ब्रॉड गेज रेलवे लाइन भी बिछाई जाएगी। इसके अलावा, भावनगर में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का हीरा पार्क, एक नया जीआईडीसीओ और महुवा, सरतनपार और मीठीविरडी में राष्ट्रीय स्तर के बंदरगाह बनाने की भी घोषणाएँ की गईं।

कांग्रेस नेता का आरोप है कि भावनगर को अब तक इनमें से किसी भी घोषणा का लाभ नहीं मिला है और ये केवल चुनावी वादे ही साबित हुए हैं।

कांग्रेस की प्रमुख माँगें

प्रधानमंत्री को भावनगर की जनता से अपने किए गए वादों के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए।

सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर अहमदाबाद के क्रिकेट स्टेडियम का नाम बदलकर सरदार पटेल के नाम पर रखा जाना चाहिए।

हीरा और जहाज़ तोड़ने वाले उद्योगों के लिए एक विशेष पैकेज और नीति की घोषणा की जानी चाहिए।

कपास, प्याज़ और मूंगफली उगाने वाले किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए संसद में तुरंत एमएसपी कानून पारित किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री को भारी बारिश से प्रभावित क्षेत्रों का व्यक्तिगत रूप से दौरा करना चाहिए और किसानों की समस्याएँ सुननी चाहिए।

भावनगर की एल्कॉक एशडाउन सरकारी कंपनी को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों को रोज़गार से फिर से जोड़ा जा सके।

कांग्रेस का कहना है कि चुनावों के दौरान भावनगर को बार-बार झूठे सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत में यहाँ के लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री अपने दौरे में क्या नई घोषणाएँ करते हैं और क्या वे पुराने वादों पर खरा उतरते हैं।