– मुदिता विद्रोही
गुजरात को देश में सबसे लंबा दरिया किनारा मिला है. उसी समुद्र के किनारे ने गुजरात को समृद्ध बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाई है. लेकिन आज स्थिति यह है कि यही पूरा का पूरा समुद्र का किनारा ही लोगों की और पर्यावरण की तबाही का उदभवस्थान बन गया है. समुद्र के किनारे किनारे जमीन में कई तरह के खनिज हैं. यही सब खनिजों के लिए इस जमीनों को सरकार और निजी कंपनियों द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा है. ज्यादातर जगहों पर यह काम नियम कानूनों की अवमानना कर के और स्थानिक लोगों के विरोध के बावजूद उनके ही संसाधनों का दोहन कर के किया जा रहा है.
गुजरात के भावनगर जिले में एक से ज्यादा जगहों पर इस तरह के आन्दोलन चल रहे हैं. इसमें से एक जगह है नीचा कोटडा. नीचा कोटड़ा और अन्य बारह मिलाकर कुल तेरह गावों की जमीन में चूने का पत्थर या लाइमस्टोन है. यह तेरह गाँव महुवा और तलाजा तहसील के हैं. सभी गावों की शत प्रतिशत जनसँख्या खेती और पशुपालन से अपना गुजारा करती है. यहाँ की जमीन उपजाऊ है और यहाँ साल में कम से कम दो फसलें और कहीं कहीं तो तीन फसलें भी ली जाती हैं. महुवा तहसील के 9 और तलाजा तहसील के 4 मिलाकर 13 गाँव – जिस में समावेश होता है – नीचा कोटडा, ऊँचा कोटडा, तल्ली, कलसार, दयाल, मेथला, बाम्भोर, मधुवन, जान्जमेर, नवा राजपरा, जुना राजपरा, रेलिया और गढ़ुला. इन तेरह गाँवों की करीब 1500 हेक्टेयर जमीन अल्ट्राटेक कंपनी को सरकार द्वारा दे दी गयी है. इन 1500 हेक्टेयर में से 150 हेक्टेयर जमीन मालिकों के पास से कंपनी ने आज से बीस साल पहले ले ली थी. लेकिन इतने साल तक उसका वास्तविक कब्ज़ा नहीं लिया था. बाकी की 90 प्रतिशत जमीन यानि की करीबन 1350 हेक्टेयर जमीन निजी मालिकी की होने के बावजूद सरकार ने यह कह कर कंपनी के नाम कर दी कि जमीन भले ही मालिक की हो परन्तु उसके नीचे का खनिज सरकार की मालिकी का होता है इसलिए 50 साल की लिज़ पर खनन के लिए कंपनी को दी जाती है.
जमीन दे देने के बाद तीन बार उसका हेतु परिवर्तन भी किया गया. सबसे पहले जमीन ‘इंडियन रेयोन’ कंपनी के लिए ली गयी, उसके बाद ग्रासिम और अंत में 2015 में अल्ट्राटेक कंपनी के नाम कर दी गयी.
जून 2016 में इन जमीनों पर खनन करने के लिए तीन अलग अलग जन सुनवाइयां आयोजित की गयी. तीनों जनसुनवायों में स्थानिक लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और सौ प्रतिशत लोगों ने खनन के विरोध में अपना मत लिखित स्वरुप में और व्यकिगत रूप से की. इसके बावजूद कंपनी को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी गयी. इस विस्तार के हजारो लोग जहाँ पीढ़ियों से खेती और पशुपालन से अपना गुजरा चलाते हैं वहां कंपनी की वेबसाईट बताती है की कंपनी खनन के काम के लिए तीन चरण में स्किल्ड और अनस्किल्ड मिलाकर मात्र 120 लोगों को रोजगारी देगी.
यह पूरा विस्तार खेती और पशुपालन का विस्तार है. चारों तरफ हरे हरे खेत और बाड़ियाँ हैं. सभी तरह के फल, सब्जियां और धान यहाँ उगते हैं. खेती और पशुपालन भी एकदूसरे के पूरक व्यवसाय हैं. एक के बिना दूसरे का जिन्दा रह पाना मुश्किल है. खनन का काम शुरू होते ही धीरे धीरे सारी जमीन चली जाएगी और जो बचेगी वह भी खेती के लायक नहीं रहेगी. ऐसी स्थिति में पशुपालन कर पाना भी असंभव हो जायेगा. लोगों के जीवन का आधार ही छीन जायेगा. इस बात को लोग अच्छी तरह से समजते हैं और इसीलिए सभी लोग खनन की मंजूरी और प्रवृत्ति का मक्कामता से विरोध कर रहे हैं.
खनन के दुष्प्रभावों से तो हम सब वाकिफ हैं ही. खनन भले ही कुछ जमीन पर हो पर उस विस्तार की पूरी जमीन खेती के लायक नहीं बचती. गहराई तक खुदाई होने के कारण सारा भूगर्भ जल खिंच कर उस तरफ चला जाता है और बाकी के कुँवें सूख जाते हैं. सेंकडों सालों से बने पानी के नैसर्गिक बहाव की दिशा में अड़चन आने से कहीं पानी इकठ्ठा हो जाता है, कहीं अपने बहाव की दिशा बदल लेता है और खेती में बड़ा नुकसान पहुंचाता है. यह विस्तार समुद्र के किनारे का विस्तार है. जमीन के अन्दर का लाइमस्टोन यहाँ कुदरती दीवाल का काम करता है और दरिया के पानी को अन्दर आने से रोकता है. जमीन के अन्दर से अगर लाइमस्टोन को निकाल लिया जाय तो इस खाली जगहों को भरने के लिए समुद्र का पानी अन्दर घुसेगा और पूरे विस्तार के भूगर्भजल और जमीन को खारा बना देगा. यहाँ पड़ोस के अमरेली जिले में अल्ट्राटेक ने इसी तरह लाइमस्टोन के खनन का काम किया है जिसके परिणामस्वरूप पूरा विस्तार बंजर और खारा बन गया है. जहाँ मीठा पानी था वहां भी अब समुद्र का पानी घुस गया है. जो उपजाऊ जमीन थी वह अब बंजर बन गयी है. लोग अपने खेतों से बेदखल हो गए और रोजगार के अन्य कोई अवसर न होने पर बड़ी जनसँख्या बेरोजगार और बेबस है. खनन से उडती डस्ट – धुल उड़-उड़ कर आस-पास के विस्तारों में जहाँ खेत हैं वहां फसलों पर जा कर बैठती है और खेती को असंभव बना देती है. लगातार उड़ने वाली डस्ट के कारण स्थल पर काम करने वाले मजदूर और पुरे विस्तार में रहने वाले लोगों के स्वास्थ, ख़ास करके फेफड़ों पर गंभीर असर होती है. लाइमस्टोन में सिलिका होने की वजह से खनन में काम करने वाले कामगारों को सिलिकोसिस की बिमारी होने का भी गंभीर खतरा रहता है. इसके आलावा केंसर जैसे जानलेवा रोगों का भी खतरा रहता है. इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए मात्र और मात्र एक निजी कंपनी के फायदे के लिए खेती की पूरी जमीन सरकारने कंपनी के हाथ दे दी है.
कानूनी तौर पर कंपनी को पड़कारने के लिए गाँव के लोगों द्वारा नेशन ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस दाखिल किया गया और पूना में चला परन्तु फरवरी 2019 में कोर्ट ने केस को यह कह कर ख़ारिज कर दिया की आपने केस दर्ज करवाने में बहुत देरी कर दी है. अब गाँव के लोग सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं.
आखिर कोई तो रास्ता खोजना होगा.
एक तरफ कानूनी लड़ाई चल रही है. लेकिन यह बात जाहिर है की इस तरह के कोई भी संघर्ष को सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ कर सफलता प्राप्त नहीं हुई. इस लिए स्थानिक लोग अहिंसक आन्दोलन चलाते आये हैं. बार बार लोगों ने सरकार में आवेदन पत्र दिए हैं, अधिकारिओं से मिल कर अपनी बात रखने की कोशिश की है, धरना दिया है, सभाएं की हैं, पत्रिका निकाली हैं और हर संभव कोशिश की है. दो-एक महीने पहले सभी गाँवों के लोगों ने बड़ी संख्या में इकट्ठे हो कर एक शांति मार्च निकाली और खनन की जगह पर जा कर सभी महिला और पुरुषों ने खोदी हुई जमीन को फिर से मिटटी से भर दिया. जब जब भी कंपनी की ट्रक लाइमस्टोन ले कर निकलती है, गाँव की महिलाएं रास्ते पर ट्रक के आगे सो जाती हैं और ट्रक को किसी हाल में नहीं निकलने देती. इस तरह महिलाओं ने भी अपनी अपार शक्ति का परिचय दिया है. कभी कभी काम रुकता है पर फिर से दोगुनी तेजी से शुरू हो जाता है. कोर्ट में से काम पर स्टे नहीं मिल रहा. गाँव के लोग अपनी आँखों के सामने अपनी जमीन को इस तरह तबाह होता नहीं देख पाते. पिछले महीने, 2 जनवरी 2019 के दिन सभी गाँववालों ने विवश हो कर फिर एक बार यात्रा के स्वरुप में खनन की जगह पर जाना तय किया. इरादा शांतिमार्च करके पहुँच कर धुन करने का और शांति से काम रोकने की बिनती करने का था. गाँवों के महिला, पुरुष, जवान, बूढ़े और बच्चे सभी इस यात्रा में जुड़े और लगभग तीन हजार लोग यात्रा करते हुए खनन की जगह की और बढे की रास्ते में ही बड़ी संख्या में पुलिस की फ़ौज मिली.
लोगों के आते ही पुलिस ने आंसू गेस छोड़ना शुरू किया. लोग फिर भी पीछे नहीं हटे और आगे बढ़ते गए. पुलिस ने और ज्यादा आंसुगेस के गोले छोड़े और फिर बेरहमी से लाठीचार्ज शुरू किया. लाठीचार्ज करते समय उन्होंने महिलाएं, बुजुर्ग या बच्चे किसी को भी नहीं बक्षा. इस घटना में अति गंभीर रूप से लोगों को चोट आई. इसके पश्चात 92 महिला और पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया गया जिसमें बूढी औरतों का भी समावेश होता है. सभी को कस्टडी में ले जा कर भी खूब बेरहमी से पिटा गया, यहाँ तक की औरतों तक के कपडे फट गए. पुरुष पुलिस के हाथों से महिलाओं पर लाठियां बरसाई गयी और उनको गिरफ्तार किया गया. सभी पर पुलिस ने दफा 307 लगाई और किसी को जमानत नहीं मिली. डेढ़ दिन की कस्टडी के बाद सभी को कोर्ट ने भावनगर जेल में भेज दिया. 9 दिन के जेलवास बाद काफी कोशिशों के बाद लोगों को जमानत मिल पायी. इस घटना के बाद पूरे इलाके में दफा 144 लगा दी गयी है. 92 लोगों की जमानत हो जाने के बाद भी गाँव के अन्य कई लोगों पर एफ.आई.आर दर्ज की गयी. किसी को किसी भी तरह के आन्दोलन, सत्याग्रह करने की इजाजत नहीं. दूसरी तरफ खनन का काम तेजी से चल रहा है.
इस स्थिति में किस तरह आन्दोलन को जारी रखा जाय यह एक बड़ा सवाल है. फिलहाल आन्दोलन के युवा नेता भरत भील की आगेवानी में लोग बड़ी संख्या में ऊँचा कोटडा गाँव के मंदिर में धरना लगा कर बैठे हुए हैं. भरतभाई भील ने घोषणा की है की अगर आने वाले कुछ दिनों में उनकी बात सरकार बिलकुल ध्यान पर नहीं लेगी तो उनके पास कोई रास्ता नहीं बचेगा और इसलिए वे आमरण उपवास पर बैठ जायेंगे.
यह पूरी स्थिति ऐसी है जिसमें सरकार का पर्यावरण विरोधी, खेती विरोधी, लोक विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और हिंसक चहेरा सामने आ रहा है. लोग आखिर कब तक अपने मूलभूत अधिकारों के लिए इस तरह आन्दोलन करते रहेंगे और हिंसा का भोग बनते रहेंगे.
– मुदिता विद्रोही
(मुदिता विद्रोही गुजरात लोकसमिति से जुडी हुई हैं और गुजरात में विशेष रूप से नैसर्गिक संसाधनों से जुड़े प्रश्नों
को लेकर लोक आन्दोलन खड़े करने में या आन्दोलनों को समर्थन करने में सक्रिय हैं.)