मधुमेह और हृदय रोग को नियंत्रित करने वाला बाजरा किसानों के लिए कड़वा जहर

गांधीनगर, 16 जून 2021

गुजरात में किसानों के लिए मुश्किल यह है कि जहां सबसे ज्यादा बाजरे की फसल होती है वह जगह है जहां आंधी आई और बारिश हुई। तो यह बाजरा अब बाजार में आ गया है और बारिश के कारण काला हो गया है। कोई इलाज नहीं है। इसका सेवन पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। इसलिए किसानों को इसे सरकारी समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है।

सरकारी बचत

गुजरात के लोगों को हृदय रोग और मधुमेह पर हर साल 26,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। गुजरात सरकार को इसके लिए काफी खर्च करना पड़ रहा है। लेकिन बाजरा एक ऐसा अनाज है जो इन दोनों बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करता है। जो गेहूं की फसल के विपरीत है। गुजरात सरकार बाजरा के लिए प्रोत्साहन देकर अपने स्वास्थ्य व्यय में 10,000 करोड़ रुपये की कमी कर सकती है।

सरकार ने नुकसान नहीं माना

प्रकृति से फसल क्षति हुंआ, मगर सर्वेक्षण में बाजरे की फसल को शामिल नहीं किया गया। इसलिए किसानों को उसका बकाया नहीं दिया गया है। दूसरा यह कि समर्थन मूल्य पर बाजरा नहीं खरीदा गया। समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर खरीदारी करने वाले व्यापारियों के खिलाफ सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।

तूफान

बनासकांठा जिल्ला में गुजरात का 50 प्रतिसत बाजरा होता है।

3 जून 2021 को बनासकांठा के सीमावर्ती इलाकों में तूफान के अलावा भारी बारिश के साथ तेज हवाएं भी चलीं। इसलिए दंता, अंबाजी, वडगाम, पालनपुर, धनेरा, दीसा, दंतीवाड़ा, अमीरगढ़, बापला, वक्तपुरा, वछोल, अलवाड़ा क्षेत्रों में भारी बारिश से बाजरे की फसल को भारी नुकसान हुआ है. एक तरफ जहां उत्पादन कम हुआ है वहीं दूसरी तरफ व्यापारी कम दाम पर खरीद रहे हैं।

ताऊ ते तूफान 19 मई 2021 की सुबह बनासकांठा के भाभोर देवदार से गुजरा और राजस्थान की ओर बढ़ गया। पाटन और बनासकांठा इलाकों में बारिश हुई। इसलिए बनासकांठा कलेक्टर ने लोगों को घर से बाहर न निकलने का आदेश दिया.

जहां तूफान चला वहां बाजरा अधिक प्रचुर मात्रा में था

इसके अलावा, किसानों ने 2.71 लाख हेक्टेयर ग्रीष्म बाजरे की बुवाई की, जहां चक्रवात के कारण बारिश हुई थी। जिसमें बनासकांठा 1.66 लाख हेक्टेयर में गुजरात के कुल बाजरा के 50% से अधिक की खेती की जाती थी। पाटन में 4 हजार और मेहसाणा में 10 हजार हेक्टेयर थे। उत्तरी गुजरात में कुल 1.93 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई।

आनंद 28 हजार हेक्टेयर, खेड़ा 20 हजार हेक्टेयर, जूनागढ़ 2800, अमरेली 2100, भावनगर 3800, सोमनाथ 5400 हेक्टेयर में रोपे गए। दक्षिण गुजरात में बारिश हुई लेकिन किसानों ने बाजरे की खेती ही नहीं की थी।

गर्मियों में दोगुना उत्पादन

प्रति हेक्टेयर औसतन 3 हजार किलो बाजरे की कटाई की जाती है। मानसून में उत्पादन गर्मियों में प्रति हेक्टेयर 1400 किलोग्राम का बमुश्किल आधा होता है। इसलिए किसान ग्रीष्म बाजरे की बुआई करें।

81.30 करोड़ किलो बाजरा पक चुका था। लेकिन बाजरे की फसल आंधी के बीच आ गई। इसलिए उत्पादन 61 प्रतिशत पर आ गया। इसलिए मुश्किल से 49-50 करोड़ किलो का उत्पादन हुआ। कीमतों में गिरावट और बारिश के कारण बाजरे का काला पड़ना से नुकसान पहुंचा है।

कीमतों में डकैती

20 किलो बमुश्किल रु।250 मिलता है। दरअसल अगर 20 किलो बाजरे की कीमत 400 रुपये से 500 रुपये है तो किसान अपनी मेहनत के बाद थोड़ा मुनाफा कमा सकते हैं. 1500-1600 करोड़ मिलने वाले थे, लेकिन 625 करोड़ रुपये ही मिले हैं। सरकार को वास्तव में लगभग 500 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ना था। मगर भाजपा की रूपानी सरकार ने किसानो को मुहावजा देने से ही ईन्कार कर दीया है। सरकार ने प्राकृतिक आपदा के लिए मुआवजा नहीं दिया है। इस तरह की शिकायतें किसानों ने की हैं।

हृदय रोग-मीठा पेशाब

गुजरात में दिल की बीमारी बढ़ रही है। 108 ईमरजंसी सेवा को 2010 में 18,647 और 2021 में 28,201 दिल का दौरा पड़ने का कोल आया था। 31-50 साल रेड अलर्ट की उम्र है। 22,000 करोड़ रुपये हृदय रोग पर खर्च किए जाते हैं।

बाजरा कोलेस्ट्रॉल के स्तर, रक्त शर्करा और रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। मैग्नीशियम, लोहा, कैल्शियम, पोटेशियम, स्टार्च, अच्छे हैं। ट्रिप्टोफैन नामक एक एमिनो एसिड भूख और पाचन को बनाए रखने में मदद करता है।

लोग मधुमेह पर सालाना 4,000 करोड़ रुपये खर्च करते हैं। 40 वर्ष से अधिक आयु के 36 प्रतिशत लोगों को मधुमेह की बीमारी है।

2006-07 में 7.70 लाख हेक्टेयर में बाजरा बोया गया था, जबकि 2016-17 में 4.64  लाख हेक्टेयर में और औसतन 3.50 लाख हेक्टेयर में बोया जाता था। इस प्रकार बाजरा की खपत कम होने से कुछ बीमारियां बढ़ी हैं। बाजरा गुजरात का पारंपरिक भोजन है। गेहूं बाद में है।

1995-96 के मानसून में, 10 लाख हेक्टेयर में 7 लाख टन बाजरा का उत्पादन किया गया था। गर्मियों के साथ यह 1.3 मिलियन हेक्टेयर था। हर आदमी साल में 20-25 किलो बाजरा खाता था। अब इसकी मात्र 10 प्रतिशत खपत हो रही है।