सुअर के कारण, गणदेवी के किसान ने जैविक खेती छोड़ दी और फिर से रसायनो का उपयोग शुरू कर दिया

गांधीनगर, 2 एप्रिल 2021

नवसारी के गाणदेवी के पास लुसवाड़ा-सरिबुजरंग गाँव के 60 वर्षीय मुकेश पनुभाई पटेल ने जैविक खेती छोड़ दी है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के बावजूद, उन्होंने सुअर उत्पीड़न के कारण जैविक खेती छोड़ दी है। उनके खेत में केंचुए से लेकर अन्य जीवों तक की खेती जैविक हो गई। इसलिए सूअर उनके खेत में आने लगे और उन्हें खाने लगे। फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था। इसलिए उन्होंने अब रासायनिक उर्वरकों के साथ खेती फिर से शुरू की है।

जैविक खेती छोड़ें

वे बिलिमोरा के कृषि उपज मंडी में सब्जी का कचरा लाते थे और उसे खेत में डालते थे। दो साल तक उन्होंने इस कचरे को खेत में रखने लगे और उनकी जमीन ने सबसे अच्छी उपज देनी शुरू की। उत्पादन भी बढ़ा। जैविक खेती और खेत बाजार के कचरे के निपटान के कारण केवल दो वर्षों में चीकू और आम का उत्पादन 40 रुपये से बढ़कर 60-70 रुपये हो गया। लेकिन उसने अब जैविक खेती बंद कर दी है। क्योंकि खेत में आकर सुअर बहुत नुकसान कर रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने खाद का इस्तेमाल किया था, इसलिए सूअर अधिक से अधिक आने लगे। वो बंध कर दीया।

खेत पर सुअरों के झुंड

वह कहते हैं कि सूअरों से छुटकारा पाना बहुत जरूरी है। अगर जहर दिया जाए तो सुअर मरते नहीं हैं। वह बच जाता है अगर उसे पीने का पानी मिल जाए। कई किसान खेतों में करंट लगाकर सूअरों को मार देते हैं। लेकिन हर रात गिरता है और सूअरों के 40-50 झुंड आते हैं। रासायनिक उर्वरकों की गंध के कारण सूअर खेत में नहीं आते हैं। उसने सिर्फ उन सूअरों को खोदा था जिन्होंने नए चिकु के पौधे लगाए थे। अब वे सुअरों से लाचार हैं। सरकार से अपील करते है कि सरकार जल्द से जल्द सूअरों का निकाल करे। शहर के लोग सूअरों को खेत पर छोड़ देते हैं। इसकी आबादी सीमा से बढ़ रही है।

महागुनि वृक्ष

उन्होंने 5 साल पहले 800 महागुनी पेड़ लगाए थे। जिसका लकड़ी निर्यात किया जाता है। इसका उपयोग रेलवे पटरियों के नीचे लकड़ी के स्लीपर के रूप में किया जाता है। किसान को राज्य सरकार द्वारा आम और चीकू के उत्पादन में 30 प्रतिशत वृद्धि और पेड़ की खेती के लिए पुरस्कृत किया गया है। आज उसकी खऱाब हालत है। उन्होंने 250 रक्त चंदन के पेड़ भी लगाए हैं।

देश में सूअर

2012 में 10.29 मिलियन सूअर थे जो 2019 में घटकर 9.06 मिलियन हो गए। जिनमें से 8.17 मिलियन गांवों में हैं। केंद्र सरकार ने गांवों में 11.40 प्रतिशत की गिरावट की घोषणा की है। केंद्र सरकार का अनुमान है कि शहरों में 17.44 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। भारत में सूअर कुल पशुओं का 1.7 प्रतिशत है।

केंद्र सरकार का मानना ​​है कि गुजरात उन 10 राज्यों में शामिल नहीं है, जिनमें सबसे ज्यादा सुअर हैं।

गुजरात में बमुश्किल 658 सुअर – कृषि विभाग

गुजरात में सूअरों की कुल संख्या 658 है, केंद्र सरकार ने घोषणा की है। जबकि भारत में 82 लाख सूअर हैं। असम में 20 लाख हैं। झारखंड में 12 लाख हैं। 2012 में, गुजरात में कुल 4279 सुअर थे। सरकार का अनुमान है कि इसमें 85 प्रतिशत की गिरावट आई है। 16 जिले ऐसे हैं जिनमें एक भी सुअर नहीं है। अहमदाबाद में 5354 सूअर मांस के लिए मारे गए। पूरे भारत में गुजरात में सबसे कम सूअर हैं।

गुजरात में 9.31 लाख स्ट्रीट डॉग हैं। उत्तर प्रदेश में 20 लाख कुत्ते हैं। गणना के अनुसार, कुत्तों की संख्या 2012 में 2.53 लाख से घटकर 2019 में 66 हजार हो गई है। 74 प्रतिशत की गिरावट।

11 लाख सूअर 

वन विभाग के अधिकारियों का अनुमान है कि गुजरात में 11 लाख से अधिक जंगली सूअर हैं। मूंगफली की खेती गुजरात में 16 लाख हेक्टेयर में की जाती है और यह सूअरों जमीन से खोदकर नष्ट कर देती है। सूअर 20 प्रतिशत मूंगफली को नुकसान पहुंचाते हैं।

भोजन के रूप में तेंदुआ को दें

अगर सूअर को तेंदुए को खिलाकर जाए तो मानव जीवन और डेयरी जानवरों की जान बचाई जा सकती है। 18,000 गांवों में से 90 फीसदी गांवों में सूअर हैं। गुजरात में 2400 तेंदुए हैं। जिसे हर दो दिन में एक सुअर दिया जा सकता है।  तो जनता करोड़ों रुपये बचा सकती है। हररोज 1200 सूएर को पकडकर तेंदुए तो देंते है तो, 4 लाख सुएर को खतम कर शकते है।

10 हजार करोड़ का नुकसान

किसान संगठन अनुमान लगा रहे हैं कि 54 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में से 10 लाख हेक्टेयर भूमि सूअरों द्वारा 10,000 करोड़ रुपये की क्षति होगी। सूअरों से कम से कम 7,000 गाँव त्रस्त हैं।

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2016 में सरकारकी योजना 750 करोड की

23 नवंबर 2016 को खेत में खड़ी फसलों की सुरक्षा के लिए कांटेदार लोहे के तारों की बाड़ लगाने के लिए 750 करोड़ रुपये दिए गए थे। उन्होंने पहले 15 साल में 13,000 किसानों को 30 करोड़ रुपये दिए थे। इस दिन, नितिन पटेल ने घोषणा की कि 2015 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में 186770 नीली गायें और 179500 जंगली सूअर थे। कच्छ में 11320 सूअर थे। 300 रुपये प्रति मीटर तय किया गया था। आझ भी हर साल रू.110 करोड का खर्च होता है।