दिलीप पटेल
अहमदाबाद, 6 मई 2020
गृह मंत्री अमित शाह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बीच राजनीतिक दरार है। जिसे नरेंद्र मोदी के हनुमान के रूप में जाना जाता है, कुछ मुद्दों पर दोनों अलग-अलग हैं।
अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम के दौरान दिल्ली में दंगे भड़क गए थे। अमित शाह ने उन तूफानों को नियंत्रण में लाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसलिए भाजपा का मुखिया नाराज था। क्युं की मोदी को दुनिया भर में दिल्ही दंगोमां बदनामी मीली थी।
कोरोना और दिल्ली के दंगों में अल्पसंख्यक समुदाय के इलाज के कारण अरब देशों और अन्य देशों के बीच अच्छे संबंध नहीं बन पाए हैं। इन देशों ने भारत के हिंदुओं के साथ उसी तरह से सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के खतरे को भी दरार का कारण माना जाता है।
गुजरात के एक राजनेता जो अमित शाह और मोदी से जुड़े हैं, ने कहा कि अमित शाह को मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव के लिए खाड़ी और अमीरात देशों पर बढ़ते दबाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा था।
दरार के लीये दूसरी बात
गुजरात में, अमित शाह की पकड़ अब मोदी से अधिक है। अमित जो कहते हैं, वह गुजरात के राजन में होने लगा है। मोदी से ज्यादा अमित शाह तय करते हैं सहकारी, बैंक, सार्वजनिक निकाय, क्रिकेट बोर्ड, कृषि उपज मंडियां, सभी डेयरियां, गुजरात सरकार को जो भी निर्देश दिया जा रहा है वह अमित शाह द्वारा दिया जा रहा है।
राजनैतिक प्रभूत्व
इस प्रकार, अमित शाह के राजनीतिक प्रभुत्व में वृद्धि के साथ, नरेंद्र मोदी ने अब निर्णय लेने की प्रक्रिया को अलग कर दिया है। मोदी पर विदेशी लॉबी द्वारा उन्हें गृह मंत्री के रूप में स्थानांतरित करने का दबाव डाला जा रहा है। भाजपा के भीतर भी ऐसा ही दबाव है। मोदी अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद निर्णय प्रक्रिया में अमित शाह की गिनती में नहीं हैं।
अमित शाह को भारी डायाबिटीश है। ईस लीये वो ज्यादा कार्य नहीं कर पा रहे है। उनका ओरपेशन अहमदाबाद में कीया गया था। ईस के बाद लगातार अमित शाह का वजन कम हो रहा है। जो उनकी तसबिरो में स्पष्ट दीखाई दे रहां है।
मोदी यह नहीं भूले कि जब मोदी को शंकरसिंह वाघेला ने गुजरात से बाहर धकेला था, तब अमित शाह खुद कुरूभाई के करीब गए थे। नरेंद्र मोदी को अलग रखा गया। मोदी इसे अभी तक नहीं भूले हैं। आनंदीबेन पटेल और संजय जोशी के लिए, जो पहले से ही अमित शाह को चुनौती दे रहे हैं, उज्ज्वल अवसर अब उभर रहे हैं।