गांधीनगर, 13 सितंबर 2020
कम उत्पादन लागत पर फसल तैयार करके और इसे पशुओं को चारे के रूप में देकर दूध को 8 से 10 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। यह चारा एक तरह का बिट होता है। जिसे बीट चारा के रूप में जाना जाता है। कंकरेजी और थारपारकर गायों को चुकंदर चारा खिलाते हैं, जिनके दूध का उत्पादन 8 से 10 फीसदी तक बढ़ गया है। चुकंदर की पैदावार कम समय और अधिक होती है। इसका पौधा आकार में बहुत बड़ा होता है। एक पौधे के बीट चारे का वजन पांच से छह किलोग्राम तक हो सकता है। फसल 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बोई जाती है। जो चार महीनों में लगभग 200 टन प्रति हेक्टेयर उपज देती है। उत्पादन लागत 50 पैसे प्रति किलोग्राम से कम है। गुजरात की कृषि युनिवर्सिटी में ईसका प्रयोग शरूं किया है।
पशु को सूखा चारा 12 किलो दिया जाता है
बनासकांठा, कच्छ, सुरेंद्रनगर, मोरबी, जामनगर जैसे शुष्क क्षेत्रों में, पशुपालकों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपने पशुओं को क्या खिलाये। दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए चारा उगाया जा सकता है। चुकंदर की जड़, जो कि चुकंदर और गाजर का मिश्रण है, का वजन 1.5 किलोग्राम है। 60% जड़ें – कंड मिट्टी के बाहर रहती हैं। इसे हाथ से निकाला जा सकता है। गाय और भैंस को जड़ों को छोटे टुकड़ों में काटकर और सूखे चारे के साथ मिलाकर रोजाना 12 से 20 किलो दिया जा सकता है। पशु के सूखे चारे की आवश्यकता का 60% से अधिक चारा न दें। बहुत अधिक बीट खिलाने से पशु में अम्लता हो सकती है। तीन दिनों पहेले से काटा हुआ बीट न खिलाएं।
अनुसंधान
राजस्थान के जोधपुर में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ने एक नए प्रकार का चारा बीट विकसित किया है। यह संगठन कई राज्यों में किसानों को चारा उगाने में मदद करता है। बनासकांठा के कुछ किसानों ने ऐसी बीट चाय उगाई है, जिससे मवेशियों में अच्छे परिणाम आए हैं। अब चुकंदर चारा कितना उपयोगी है, इस पर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और कृषि विभाग ने काम शुरू कर दिया है।
अधिक पढे: गुजरात उच्च न्यायालय, भाजपा और रूपानी सरकार मास्क पहनने में अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं
खारी मिट्टी में हो सकता है
यह कच्छ, सुरेंद्रनगर, मोरबी, द्वारीका, अहमदाबाद, भावनगर, मेहसाणा की नमकीन भूमि पर हो सकता है। नमक प्रभावित मिट्टी में बेड बनाकर बीट चारा उगाया जा सकता है। जोमन, मुनरो, जेके कुबेर और जेरोनिमो चारा किस्मों की अच्छी किस्में हैं। 7 से 15 दिनों में पानी देना चाहिए।
अधिक पढे: गुजरात में अब नई दिशा क्या हो सकती है, इससे आवारा और बेकार मवेशियों का निस्तारण किया जा सकता है
राजस्थान में स्वयंसेवी संगठनों का अच्छा काम
गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर राजस्थान के विभिन्न जिलों के हजारों किसानों ने फसल ली। मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कई अन्य राज्यों में अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। ब्रिटेन, फ्रांस, हॉलैंड, न्यूजीलैंड जैसे कई देशों में फसलें बहुत लोकप्रिय हैं जहाँ बड़े पैमाने पर पशुपालन हो रहा है।
रोग कीट
नमक और क्षारीय पानी के साथ उगाया जा सकता है। प्रमुख बीमारियों और कीटों की सूचना नहीं दी गई है। मिट्टी में कीटों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले क्विनोल्फोस पाउडर (1.5%) प्रति हेक्टेयर लगाया जाता है।