हैदराबाद का चुनाव अहमदाबाद की तरह था
गांधीनगर, 7 डिसेम्बर 2020
सत्तारूढ़ पार्टी तेलंगणा राष्ट्र समिति (तेरास-टीआरएस) ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव परिणामों में विजयी हुई है। भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। तेलंगाना राज्य में तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी की सरकार है। उनका भाजपा के गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूरी केंद्र सरकार ने हैदराबाद के चूनाव में जम कर विरोध किया था।
अगर EVM होते तो सत्ता बीजेपी के पास होती। लेकिन हैदराबाद सरकार ने ईवीएम को पेपर बैलेट से बदल दिया। इसलिए कोई गड़बड़ नहीं कर सकता। नतीजतन, भाजपा ने सत्ता खो दी है। अगर ईवीएम से मतदान होता, तो बीजेपी का अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वड़ोदरा जैसी सत्ता हैदराबाद पर शहेर पर कबजा होता।
भाजपा नेता अमित शाह एक शहर में सत्ता हासिल करने के लिए हैदराबाद में कंई दिनों तक रहे। उन्होंने भाजपा को जीताने के लिए सत्ता, प्रभाव, धन, दलबदल और शक्ति का इस्तेमाल किया। हालांकि, अमित शाह हार गए हैं। भाजपा हैदराबाद पर सत्ता हासिल करके तेलंगाना राज्य सरकार बनाना चाहती थी। हैदराबाद एक एसा शहर है जो दक्षिन भारत का सत्ता का द्वार है। वो द्वार पर देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी कबजा करना चाहते थे। मगर कर नही शके।
जिस तरह से भाजपा अहमदाबाद और राजकोट शहर में सत्ता पर कब्जा करके गुजरात में सरकार बनाई थी, ठीक ईसी तरह हैदराबाद मे करना चाहते थे, नहीं हुंआ। अमित शाह और नरेंद्र मोदी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा के वोट बढ़े हैं, मगर अहमदाबाद का कर्णावती का नारा काम आ गया था , एसा हैदराबाद का भाग्यनगर का नारा कम नहीं आया। भाजपा के तोड़फोड़ करने वाले नेता हैदराबाद में शक्ति और धन का उपयोग कर रहे थे।
टीआरएस सबसे बड़ी पार्टी
टीआरएस एकल सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। टीआरएसए ने 150 सीटों वाली नगर निगम में 55 सीटें जीती हैं। सीआरएस सबसे अधिक सीटों वाली पार्टी बन गई है। जबकि भाजपा ने 48 सीटें जीती हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम सीट से 44 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है। जबकि कांग्रेस को 2 सीटें मिली हैं।
बीजेपी तोडजोड नहीं कर शकेगी
महापौर बनाने के लिए 74 सदस्यों की आवश्यकता होती है। असदुद्दीन ओवैसी से 44 और भाजपा से 48 सीटें जीती है। दोनो साथ मिलकर मीली जुली सत्ता हांसील कर शकते है। लेकिन अमित शाह ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि अब वह विधानसभा चुनावों में टीआरएस और असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर सत्ता हासिल करना चाहेंगे। अन्यथा, कश्मीर की तरह, हैदराबाद में भाजपा सत्ता में आ सकती है। नीति को लाइन पर रखकर, वे हैदराबाद को कश्मीर के विसमान विचारधारा के साथ शासन कर सकते हैं।
सत्ता का बंटवारा
TCS और AIMIM संयुक्त रूप से सत्ता हासिल करेंगे। महापौर और उप महापौर ढाई साल तक सत्ता का आदान-प्रदान करेंगे। हैदराबाद के पूर्व मेयर और एआईएमआईएम के उम्मीदवार मोहम्मद मजीद हुसैन ने मेहदीपटनम सीट जीती है।
कांग्रेस में फिर से निराशा
कांग्रेस का प्रदर्शन फिर निराशाजनक रहा है। कांग्रेस ने दो सीटें जीती हैं। 75 लाख मतदाताओं में से, केवल 35 लाख यानी 46.55 प्रतिशत मतदान के लिए गए। जिसे तेलंगाना पार्टी और कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान माना जाता है।
बीजेपी नेताओं की फौज उतारी
हैदराबाद एक महानगरीय शहर है। जिसमें भारत के सभी राज्यों के लोग शामिल हैं। अपने वोटों को जुटाने के लिए, भाजपा ने मुख्यमंत्रियों के प्रचार के लिए उतारे, गुजरात के अलावा अन्य राज्यों के नेताओं को बुलाया था। हालांकि, फीर भी भाजपा हार गई है।
शहर चुनाव के लिए भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं की एक सेना तैनात की गई थी, गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों के लिए प्रचार किया। स्मृति ईरानी के अलावा, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, तेजस्वी सूर्या, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मराठी मतदाताओं के लिए प्रचार किया। हालांकि, भाजपा सत्ता में नहीं आई। पीयूष गोहिल को राजस्थानी मतदाताओ के लिए लाया। विजय रुपाणी को गुजरात से नहीं बुलाया गया क्योंकि, अगर वे गए भी हो तो वोट तोड़ के आते।
भाजपा ने हैदराबाद चुनावों में अपने स्टार नेताओं को मैदान में उतारा था, जिसके बाद एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अभी बाकी थे।
EVM
छोटे निगम चुनावों से चिंतित भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा क्यों करती है? भाजपा यह साबित करना चाहती थी कि हम ईवीएम- EVM के बिना भी जीत सकते हैं। लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। इसलिए पूरे देश के नेताओं को मत जुंटाने लाया गया। मगर EVM नहीं थै। भाजपा की हार की स्थिति पूरे देश में हो सकती है, यदि देश भर में मतपत्र डाले जाते हैं। गुजरात में बेटेल पेपर से सरकार नहीं बना सकते। गुजरात के कंई लोक बेलेट वोट सिस्टम लाने के लिये आंदोलन कर रहे है। ईनका नारा है EVM हठावो वेलेट पेपर लाओ।
2015में भाजपा के पास 4 सीटें थीं, ओवैसी के पास 44 और तेलंगाना में 99 सीटें थीं। जिसमें तेलंगाना को सीटें गंवानी पड़ी हैं।
असदुद्दीन ओवैसी
बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्यक्ष रूप से AIMIM की मदद की और उसे 5 सीटें मीवी। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ छूपा गठबंधन कर सकते हैं या वोटिंग से परहेज कर तेलंगाना में खेल खेल सकते हैं। 10 में से 7 विधानसभा सीटों पर ग्रेटर हैदराबाद की 50 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इन्हें ओवेसी की पार्टी ने पकड़ लिया है। ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने निगम चुनाव में कुल 51 उम्मीदवार उतारे हैं। जिनमें से 46 उम्मीदवार मुस्लिम उम्मीदवार हैं। एआईएमआईएम बीजेपी का सामना कर रही है।
राज्य की सत्ता के लिए शहर पर कब्जा
भाजपा नगर निकाय चुनाव को राज्य की सत्ता को जब्त करने के साधन के रूप में देखती है। भाजपा के पास पंचायत चुनाव का कोई माईना नहीं हैं। हालांकि भाजपा के पास तेलंगणा पक्ष की तुलना में अधिक संगठनात्मक, पैसो की ताकत थी, लेकिन अमित शाह जमीनी स्तर पर जीत नहीं सके। यह दर्शाता है कि नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच एक बड़ी खाई है।
जब तक गुजरात में गैर-भाजपा सरकारें थीं, तब तक इसके मुख्य नेता शहरों में चूंटाव जीतने के लिए बाहर नहीं गए थे। मुख्यमंत्री भी नहीं। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी केंद्रीय मंत्री को नगरपालिका की बैठकों में भाग लेते नहीं देखा।
हिंदू के नाम पर वोट मांगे
हैदराबाद में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी मॉडल को अपनाया था जिस तरह से भाजपा ने 1987 में अपना पहला चुनाव गुजरात में जीता। अहमदाबाद में भाजपा को सत्ता में लाने के लिए अहमदाबाद का कर्णावती नामकरण की घोषणा की। भाग्यनगर के रूप में हैदराबाद का नाम बदलने की घोषणा करते हुए, उत्तर प्रदेश के योदी आदित्यनाथ को हिंदुत्व का प्रचार करने के लिए मोदीने भेजा था। अमित शाह ने चार मीनार के नीचे भाग्यलक्ष्मी मंदिर का दौरा किया। जो ओवैसी का गढ़ है। इसी से हिंदुत्व का निर्माण हुआ। कुछ हिंदू वोट भाजपा के पास गए लेकिन इससे ओवैसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। मुस्लिम वोट ओवैसी को गया। इसलिए यह पिछली 44 सीटों को बरकरार रखने में सफल रही है।
भाजपा फिर भी सत्ता हासिल नहीं कर सका। अहमदाबाद का नाम अभी तक कर्णावती नरेंद्र मोदी ने नहीं रखा है। नरेंद्र मोदी ने पूरे अहमदाबाद में एक रथ यात्रा की और बेगम के खिलाफ अभियान चलाया और अहमदाबाद नगर निगम जीता। अहमदाबाद में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई मुख्यमंत्री चुनाव में वोट मांगने गया हो। मगर प्रधान मंत्री तो हैदराबाद नहीं जा सकते थे।
अमित शाह के चुनाव अभियान से पहले ही, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद के लोगों को चेतावनी दी थी। विभाजनकारी ताकतें हैदराबाद में घुसकर कहर ढाने की कोशिश कर रही हैं। यह चुनाव हैदराबाद की शांति को बचाने के लिए है।
चंद्रशेखर राव की चाल
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भाजपा को मौका दिए बिना चुनावों की घोषणा की। इसलिए, भाजपा को खरीद परोष और पैसा खर्च करने का मौका नहीं मिलता है। यह कदम भाजपा के लिए एक झटका था। बीजेपी बडी तोड़फोड़ नहीं कर सकी क्योंकि उसने समय नहीं दिया।
मेयर हमारा होगा
भाजपा ने घोषणा की कि 4 में से 40 सीटें आएंगी। महापौर हमारा होगा। हैदराबाद का नाम बदलेंगे। हम निज़ाम से मुक्त करेंगे। ऐसा बयान बताते है कि भाजपा हैदराबाद पर सत्ता हासिल करने के लिए बेताब थे।
टीडीपी की कमी
भाजपा किसी भी कीमत पर हैदराबाद में सत्ता हासिल करना चाहती थी। मोदी की नीति देश के राज्यों में स्थानीय पार्टी के साथ समझौता करके सत्ता हासिल करने की रही है। लेकिन हैदराबाद में कोई पार्टी नहीं थी जिससे मोदी बातचीत कर सकें। इसलिए उन्होंने अनैतिक रूप से दूसरी पार्टीके लोगों को भाजपा में बदलने का फैसला किया था।
तेलुगु देशम पार्टी (TDP) कभी हैदराबाद में महत्वपूर्ण थी। लेकिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना अलग होने के बाद अब उनका कोई वजूद नहीं है। इसलिए उनके कैडर और उसके नेताओं को बड़े पैमाने पर भाजपा में लाया गया था। अधिकांश भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा को कैडर मिला । लेकिन सत्ता हासिल नहीं कर सका।
इस तरह बीजेपी ने टीआरएस पार्टी से भी पक्ष बदल कर बड़ा बदलाव किया। टीआरएस नेता और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी एक परिवार चलाने वाली पार्टी है। इसलिए उनके खिलाफ पार्टी के सभी असंतुष्ट नेताओं को भाजपा में लाया गया। बड़ा दलबदल हुआ। टीडीपी कैडर और टीआरएस नेताओं ने भाजपा में लाया गया। ठीक ईसी तरह अहमदावाद में हुंआ था।
बारिश की राजनीति
अहमदाबाद में एक ही दिन में 21 इंच बारिश हुई और भाजपा अगला चुनाव हार गया। कांग्रेस को सत्ता मीली। ठीक ईसी तरह हैदराबाद में भाजपा ने बारिश और हिंदू धर्म के नाम पर सभी सीटें जीती हैं। चुनाव से पहले 20 दिनों में दो बार 20 इंच से अधिक बारिश हुई। जिसमें तेलंगाना सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर सकी। इसलिए भाजपा ने इसका फायदा उठाया और वोटों की गिनती की। लेकिन सत्ता नहीं मिली। गरीब लोगों ने भाजपा को वोट दिया था क्योंकि वे अदालत के प्रतिबंध आदेश के कारण 10,000 रुपये की सहायता नहीं मीली थी।
साउथ भारत का गेट हैदराबाद
यदि दक्षिण भारत में राजनीतिक प्रवेश प्राप्त करना हैं, तो हैदराबाद पर कब्जा करना जरूरी है। इसलिए भाजपा ने इस पर जोर दिया। क्योंकि हैदराबाद दक्षिण का प्रवेश द्वार है। भाजपा ने स्थानीय मुद्दे को बहुत हल्के में लिया लेकिन हिंदुत्व और शहर का नाम बदलने की राजनीति की। भाजपा ने घोषणा की कि टीआरएस पार्टी ने अवैध निर्माणों को वैध करके प्रभाव शुल्क लिया है। हम हैदराबाद में इन सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर देंगे और इसे एक शहर बना देंगे। इस तरह की घोषणा का अपेक्षित प्रभाव नहीं था। अहमदाबाद में भी भाजपा ने अवैध मकान निर्माणों को वैध कर दीये है। मगर हैदराबाद में कुछ ओर कहते रहे।
12 सीटें 500 मतों से जीतीं
भाजपा ने 44 में से 12 सीटें 500 मतों के अंतर से जीती हैं। बीजेपी के बी एन रेड्डी ने नगर सीट पर 32 वोटों से जीत दर्ज की है। इस प्रकार जीत का अंतर कम हो जाता है।