(दिलीप पटेल) अहमदाबाद
परिवारिक खेतीअगले 10 वर्षों के लिए दुनिया भर में मनाई जा रही है, लेकिन गुजरात सरकार पारिवारिक खेती को समाप्त कर रही है। गुजरात सरकार ने कई कानून बनाए हैं जिनमें पारिवारिक खेती खत्म हो रही है। परिवार के किसानों का एक बड़ा वर्ग पाटीदार थे। इनमें से करीब 50 फीसदी ने खेती छोड़ दी है। अन्य 30 फीसदी ऐसे हैं, जो खेती के साथ-साथ रोजगार करते हैं। जबकि 20 प्रतिशत पूरी तरह खेती करते हैं। ओर कंई वर्ग मे भी अहीं हालत है। इस प्रकार, 1995 के बाद, जब भाजपा की सरकारें आईं तबसे परिवार की खेती समाप्त हो रही है।
केशुभाई पटेल की सरकार जानेके बाद 20 साल में मोदी युग में गुजरात में खेती करने वागे पारंपरीक कुटुंब खेती को छोड रहै है। परंपरागत रूप से खोती करते थे अब कोई भी किसान नहीं है वौ भी खेत खरीद शकते है। पहले कानून मनां करतां था। अब जो खेती की जाती है वह ज्यादातर पिछड़े वर्ग और अशिक्षित लोगों द्वारा की जाती है। अब रूपानी और मोदी सरकार द्वारा बनाए गए लगभग 10 कानूनों से खेती और तेजी से खत्म हुंई है, हो रही है। रूपानी का नया कानून किसी को भी खेत खरीदने की अनुमति देता है। इसलिए अब खेत अमीरों के हाथों में जा रहे हैं। एक बार फिर सामंत शाही भाजपा सरकारोने लाई है।
संयुक्त राष्ट्र मगर संयुक्त किसान नहीं
संयुक्त राष्ट्र (एफएओ) के खाद्य और कृषि संगठन और कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष (आईएफएडी) ने 29 मई, 2019 को दुनिया भर के विकासशील देशों में परिवार की खेती को बढ़ावा देने और छोटे किसानों की मदद करने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र परिवार खेती दशक’ शुरू किया। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े दो वैश्विक संगठन 2019 से 2028 तक 10 साल के परिवार की खेती का दशक मनाया जा रहा है। दुनिया के 90 प्रतिशत से अधिक किसान पारिवारिक खेती में संलग्न हैं। वैश्विक उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी 80 फीसदी है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि ये किसान और पारिवारिक खेती विकास का इंजन हो सकते हैं। जो भूख और कुपोषण को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
यदि पूरा परिवार खेती में लगा हुआ है, तो इसे पारिवारिक खेती कहा जाता है। इसकी खेती केवल एक परिवार पर की जाती है। उपज का एक बड़ा हिस्सा परिवार के सदस्यों द्वारा खाया जाता है। अधिशेष उपज अन्य वस्तुओं के बदले स्थानीय बाजार में बेची जाती है। ये खेत स्थानीय उत्पादों की खेती करते हैं। 10 वर्षों में, पूरी दुनिया उन लोगों को वापस लाने की कोशिश करेगी, जिन्होंने खेती के पारंपरिक व्यवसाय को छोड़ दिया है।
गुजरात में सबसे ज्यारे जरूरत है। मगर भाजपा की रूपानी सरकार संयुक्त राष्ट्र (एफएओ) के खाद्य और कृषि संगठन और कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष (आईएफएडी) के खीलाफ कदम ऊठा रही है।
90% खेती परिवारों द्वारा की जाती है जिससे विश्व के 80% खाने का उत्पादन भी होता है.
👩🏽🌾👨🏽🌾 पारिवारिक खेती का विकास वैश्विक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बहुत ज़रूरी है
इसीलिए 2019-2028 को पारिवारिक खेती का संयुक्त राष्ट्र दशक घोषित किया गया है pic.twitter.com/uKZ8VmSYVd
— UNHindi (@UNinHindi) January 3, 2019
गुजरात का किसान
गुजरात सरकार की अनुमानित कृषि जनगणना के अनुसार, 53.19 लाख किसानों में से, 20.17 लाख सीमांत और 16.15 लाख छोटे किसान हैं, जिनके पास मुश्किल से आधा हेक्टेयर भूमि है। 1998 में, एक करोड़ किसान थे। किसानों को औसत आय 7926 रुपये प्रति वर्ष मिलती है। 42.6 प्रतिशत किसानों पर प्रति परिवार 16.74 लाख रुपये का कर्ज है।
10 साल में 13 लाख किसान गिरे
गुजरात में 10 साल में 3.55 लाख असली किसान कम हुए हैं।
इसके विरुद्ध, खेत श्रमिको में 16.78 लाख की वृद्धि हुई है। किसान खेत मजदूर बन रहे हैं। जब मोदी मुख्यमंत्री बने, तो 2001 में किसानों की संख्या 58 लाख थी। 10 वर्षों में 54.47 लाख। इस प्रकार, मोदी के 10 वर्षों में अकेले 3.55 लाख की गिरावट आई है। यदि इसे इसका एक हिस्सा माना जाता है, तो किसानों को 10 वर्षों में 21 लाख ज्यादा होना चाहिए। इस प्रकार वास्तविक कमी 13 लाख किसानों की है।
खेत
आधा हेक्टेयर भूमि के टुकड़े बढ़ रहे हैं। 2001 में, 6 लाख खेत आधे हेक्टेयर से कम थे। जो 10 साल बाद 9.31 लाख हो गए। आज यह 12 लाख होने का अनुमान है। इस प्रकार, गुजरात में मोदी राज के 20 वर्षों में, छोटे खेतो की संख्या में बडी वृद्धि हुई है। यदि किसान परिवार केवल खेत पर रहना चाहते हैं, तो उन्हें कम से कम 10 बिघा – 2 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। गुजरात में 55 लाख किसान हैं। 20 लाख किसान हैं जो 3 बीघा जमीन के साथ काम करते हैं।
पतन
किसान खेती क्यों छोड़ रहे हैं यह गुजरात सरकार के लिए चिंता का विषय नहीं है। दशकों से किसानों को उनका हक नहीं दिया गया है। आजादी के समय, गुजरात में कुल जीडीपी का कृषि का योगदान आधा था अब 10-13% हो गया है। इस प्रकार गुजरात में कृषि पतन के कगार पर है। सरकारें पर्याप्त ध्यान नहीं देती हैं। सिंचाई की 60 प्रतिसत सुविधा नहीं है। ऐसी कोई सुविधा नहीं है जो अनाज को स्टोर कर सके। सरकारें केवल वादे करती हैं। अस्सी प्रतिशत सहायता भाजपा के रिश्तेदारों द्वारा ली जाती है।
मशीन – कुदरत
बड़ी मशीनें खेतों तक नहीं पहुंच सकतीं। खेत की उपज सही समय पर बाजार तक नहीं पहुंच सकती। पर्याप्त कीमत नहीं मिलती है। इसे प्राकृतिक नुकसान भी नहीं माना जाता है। किसान की सबसे बड़ी समस्या प्राकृतिक आपदाएँ हैं। महामारी भी है। 1995 के बाद से, भारत में 2,96,438 किसानों ने आत्महत्या की है।
नई खेती
अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की आबादी मौजूदा 7.7 बिलियन से बढ़कर 9.8 बिलियन हो जाएगी। 2050 तक अनाज उत्पादन 40 प्रतिशत तक गिर सकता है, जबकि वैश्विक जीडीपी में 45 प्रतिशत की गिरावट संभव है। तो भूमि की कमी के कारण दुनिया में हाइड्रोपोनिक्स का वर्तमान बाजार 1.5 बिलियन है, 2023 तक 4 गुना से अधिक बढ़ जाएगा।
2020-21 | 2010-11 | 2000-01 | ||||
हेकेटर | खेतो की संख्या | कुल जमीन | खेतो की संख्या | कुल जमीन | खेतो की संख्या | कुल जमीन |
0.5 से कम | 1266913 | 264895 | 931420 | 212376 | 595927 | 159857 |
05-1.0 | 1066647 | 812260 | 884214 | 672445 | 701781 | 532630 |
1.0-2.0 | 1601440 | 2315198 | 1429021 | 2074884 | 1256602 | 1834570 |
2.0-3.0 | 718343 | 1836621 | 718343 | 1744147 | 680027 | 1651673 |
3.0-4.0 | 359190 | 1238512 | 361190 | 1244512 | 363140 | 1250588 |
4.0-5.0 | 193122 | 891844 | 214122 | 952844 | 227994 | 1014208 |
5.0-7.5 | 196776 | 1190051 | 226776 | 1365051 | 255731 | 1540180 |
7.5-10.0 | 50753 | 436536 | 71753 | 612536 | 92730 | 788731 |
10.0-20.0 | 27289 | 340404 | 43289 | 545404 | 59257 | 750789 |
20.0 से ज्यादा | 4911 | 595070 | 5482 | 474263 | 6053 | 353456 |
कुल | 5531978 | 9920250 | 4885610 | 9898466 | 4239242 | 9876682 |
2020-21 अंदाज |
मुसीबत
कुटुंब विभाजन, गरीबी, आर्थिक हालत की वजह से जमीनों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा जा रहा है। भूमि की गिरावट के रूप में, किसान खेती छोड़ देते हैं। श्रम की ओर मुड़ता है। बाजार में अपनी फसल बेचने के लिए किसानों को अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा दलालों को देना पड़ता है।
कानून
गुजरात में 1960 में लैंड सीलिंग एक्ट लागू किया गया था। जिसमें भूस्वामी जिनके पास खेती योग्य भूमि की निर्धारित सीमा से अधिक थी, उनकी जमीनों पर सरकार का कब्जा था। यह जमीन 2015 से उद्योगों को दी जा रही है। वंशानुगत का अर्थ है वह व्यक्ति जो विरासत में मिली भूमि का मालिक हो या वह व्यक्ति जो बिना किसी गणना के बेची गई भूमि का मालिक बन जाता है वह ‘पुरानी स्थिति’ के अनुसार मालिक होता है। जमीन बेचने के लिए, एक व्यक्ति को खुद एक किसान होना जरूरी था। लेकिन अब रूपानी जो नया कानून लाये है उस में एक गैर-किसान भी जमीन खरीद सकता है। कंपनी खरीद शकती है। ईस लीये छोटे किसान नाश करेंगे। वे अब जल्दी से अपनी जमीन बेच देंगे।
अमेरिकी किसान और गुजरात
अमेरिका में 64 प्रतिशत किंमत किसानों को किंमतो उपभोक्ता से मिलती है। जबकि गुजरात में केवल 10 से 23 प्रतिशत किसानों को उपभोक्ता जो खर्च करतां है ईसमे से मिलती है। जैसे अगर लोग 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से टमाटर खरीदते हैं, तो किसान उनसे मुश्किल से 10 रुपये से 23 रुपये में मिल सकता है। अगर लोग अमेरिका में ये टमाटर खरीदते हैं, तो किसानों को उस में से 64 रु। मिलता है। इसका मतलब है कि किसानों के ज्यादा मुनाफा बिचौलियों-व्यापारीओ द्वारा खाया जाता है।
गुजरात में कृषि रोजगार का प्रमुख स्रोत अब नहीं है। कीमत में बदलाव के कारण भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसलिए, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान साल-दर-साल घट रहा है। खेतों पर अनाज का उत्पादन घट रहा है।
जापान के किसान
जापान में किसान कम हैं, फिर भी वहां खेती की जाती है। पॉलिमर, ड्रोन का उपयोग करता है। 22 प्रकार के ड्रोन विकसित किए जा रहे हैं। पिछले दशक में, जापान में कृषि उत्पादन में लगे लोगों की संख्या 2.2 मिलियन से गिरकर 1.7 मिलियन हो गई है। इनमें से, अधिकांश श्रमिकों की औसत आयु 67 वर्ष है।