गुजरात राज्य में कोरोना महामारी के बीच कम वेतन के कारण शिक्षक एक स्कूल छोड़ कर दूसरे में शामिल नहीं हो पाएंगे। निजी स्कूलों के व्यवस्थापकों ने आंतरिक रूप से निर्णय लिया है कि स्कूल से बर्खास्त किए गए किसी भी शिक्षक को अन्य स्कूलों द्वारा काम पर नहीं रखा जाएगा। शोषन की हद पार कर दी हा गुजरात के शिक्षन व्यापारीओने। गुजरात में कम वेतन वाले अस्थाई 1 लाख शिक्षक नोकरी गवां चूके है। हर महिने रू.5 हजार से 10 हजार हंगामी शिक्षक को तनखा मील रही है। फीर भी भाजपाकी विजय रूपानी की सरकार कुठ नहीं कर रही है।
निजी स्कूल प्रशासकों के फैसले ने कम वेतन वाले शिक्षकों को अपनी नौकरी बरकरार रखने के लिए मजबूर किया है। निजी स्कूलों में नियोजित शिक्षकों का कोई संघ नहीं है, इसलिए शिक्षक अपनी मांगों को सही स्तर पर नहीं ले जा सकते हैं। सरकार ने कोई संघ बनने नहीं दीया है। जो था उनको धमकाकर बंध करवा दीया है।
निजी स्कूलों में नियोजित शिक्षकों के वेतन में 40 से 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। जिसके कारण शिक्षक भी स्कूल प्रशासकों से नाराज हैं। और इस स्थिति में यदि शिक्षक स्कूल छोड़ता है तो स्कूल प्रशासन को फिर से नए शिक्षक ज्यादा तनखा दे कर लाना पडता है। परिणामस्वरूप, स्कूल प्रशासकों ने उन शिक्षकों को नौकरी पर नहीं रखने का फैसला किया है, जिन्होंने अन्य स्कूलों में अपनी नौकरी छोड़ दी है। व्यवस्थापकों ने शिक्षकों के खिलाफ इस नई नीति को अपनाया है ताकि शिक्षक स्कूल न छोड़ें।