गांधीनगर, 13 मार्च 2021
भारत में सबसे ज्यादा अरंडी गुजरात में होती है। गुजरात में अदानी के गांव में सट्टाखोरी चल रही है। जीस में किसानो को नुकसान हो रहा है। मोदी के नये कानून भी व्यापारीओ को गोदाम भरने की छूट दे रहा है। अब जो गुजरात मॆं हो रहा है वह कानून बनने से वडे पैमाने में होगा। गुजरात में अभी से शरू हो गया है।
गुजरात के कुल खेतों में किसानों ने बमुश्किल 6.45 प्रतिशत ही एरंड की खेती की है। जिले की कुल भूमि में पाटन के किसानों ने राज्य में सबसे अधिक 27.63 प्रतिशत किसानों की अरंड की खेती की। कृषि विभाग के अनुमान, कृषि वर्ष 2020-21 में, किसान 6.38 लाख हेक्टेयर में अरंडी की खेती करके 14.70 लाख टन उत्पादन करेंगे। 2303 किलोग्राम का उत्पादन प्रति हेक्टेयर आने की उम्मीद थी।
कोई कंपनी के पास अगर रू.4500 करोड है तो गुजरात का सभी एलंड खरीद कर गोदाम में भर शकते है। 5 महिने बाद दो गुना मुनाफा कमा शकते है। नये कृषि कानून से यह होगा ए गुजरात ने बता दिया है।
जब से सट्टा शुरू हुंआ है तबसे सौराष्ट्र के किसानो ने एरंड उगाना बंध कर दीया है।
कम उत्पादन
अरंडी की खेती, उच्च वर्षा और बीमारी के साथ, अरंडी का उत्पादन 1.2 मिलियन टन से अधिक होने की संभावना नहीं है।
पिछले साल की खेती
2019-20 में, 7.36 लाख हेक्टेयर में 14.32 लाख टन के उत्पादन के साथ प्रति हेक्टेयर 1944 किलोग्राम अरंडी का उत्पादन करने का अनुमान है। कृषि अधिकारियों का मानना है कि पैदावार 15.50 प्रतिशत या 359 किलोग्राम कम प्रति हेक्टेयर थी।
कम उत्पादन के बावजूद किसानों पर व्यापारियों का दबाव
वायदा बाजार के व्यापारियों ने अरंडी में बाजार को दबाकर किसानों को लूटना शुरू कर दिया है। इससे पहले, लाभ कमाने के लिए उच्च कीमतें बताई गई थीं। ऐसा 3 बार हुआ। व्यापारी अब असली माल खरीदकर गोदामों को भरने का काम कर रहे हैं, बाजार को दबाकर कर रहे है। वायदा तेज है। परिणामस्वरूप, किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
सट्टा बाजार से किसानों को नुकसान
वायदा सट्टा शुरू होने के बाद से किसानों को बहुत नुकसान हुआ है। किसान अपनी उपज की कीमत निर्धारित नहीं करते हैं, लेकिन वायदा सटोरिये कृषि उपज की कीमत निर्धारित करते हैं। अब बाजार में आते ही फ्यूचर सटोरियों ने अरंडी के सामान के दाम घटा दिए हैं। किसानों की कीमत कम कर के पानी की कीमत पर बेचने की बारी होगी। क्योंकि किसान संगठित नहीं हैं बल्कि सट्टेबाज संगठित हैं। व्पारी संगठित है। थोडे व्यापारी साथ मिल कर पूरे गुजरात के एरंड जैसे पाक खरीद शकते है। बाद में दाम बढा शकते है। कोई पूछने वाला नहीं होगा, नये कानून के बाद।
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सस्ती कीमत 1200 प्रति 20 किलो
मौजूदा कीमत 1,000 रुपये से लेकर 875 रुपये तक है। लेकिन वायदा में यह 500 रुपये या 200 रुपये प्रति 20 किलोग्राम तक लेने की गणना दिखाई देती है। ये सट्टेबाज फिर किसानों के सस्ते माल को गोदाम में लोड करेंगे। और बाजार में माल की कमी के कारण कीमत 1 या 2 हजार रुपये तक जा सकती है। इसलिए कई किसानों ने कीमत 1200 रुपये तक पहुंचने तक अरंडी नहीं बेचने का फैसला किया है। क्योंकि जब तक 20 किलो के लिए 1 हजार रु है, तब तक कोई लाभ नहीं।
भेजा हुआ माल
2020 में, निर्यात में 20% की वृद्धि हुई। यदि 1.5 मिलियन टन माल बाजार में प्रवेश करता है, तो निर्यात बढ़ेगा। भाभर जहां निजी में सट्टेबाज काम करते हैं, अदानी का यह नजदी की गांव है। गुजरात में इसकी कीमतें 900 से 920 के बीच हैं। यह बहुत सारे संकेतक हैं। भाभर में 2500 बेग का व्यापार होता है। कादी में 6500 और सिद्धपुर में 2365।
सामान्य खेती
वर्तमान वर्ष 2020 में, 6.38 लाख हेक्टेयर में पैदा हुंई थी। कृषि विभाग का अनुमान है कि किसानों ने पिछले साल 7.40 लाख हेक्टेयर रोपण किया था। आमतौर पर 6.25 लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है।
अधिकांश रोपण कच्छ में किया जाता है। उत्तर गुजरात में सबसे अधिक खेती होती है। दक्षिण गुजरात के सौराष्ट्र में किसानों ने बड़े पैमाने पर अरंडी लगाना बंद कर दिया है।
10 साल पहले खेती
2010-11 में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 9.86 लाख टन थी, जो 2010-11 में 4.90 लाख हेक्टेयर थी।
दशक में उत्पादन बढ़ा
कृषि वर्ष 2020-21 में, किसानों ने 6.38 लाख हेक्टेयर में अरंडी लगाई है और 14.70 लाख टन के उत्पादन के साथ, 2303 किलोग्राम की उत्पादकता कृषि विभाग द्वारा निर्धारित की गई है। इस प्रकार 10 वर्षों में किसानों ने रोपण, उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि दिखाई है।
ईंधन में उपयोग
विकसित देश पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते प्रदूषण से बचने के लिए ईंधन के रूप में अरंडी के तेल का उपयोग करते हैं। जिन किसानों को सिंचाई की सुविधा नहीं है, उनकी बेकार भूमि पर अरंडी की खेती करके लाभ कमाया जा सकता है। इसकी खेती श्रम और लागत दोनों को कम करती है।
अरंडी का उपयोग
अरंडी का तेल बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन यह भोजन के लिए काम नहीं करता है। कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल पेंट, डिटर्जेंट, दवाइयां, प्लास्टिक का सामान, स्याही, पॉलिश, पेंट और लुब्रिकेंट बनाने में किया जाता है। अरंडी के तेल से 250 प्रकार की सामग्री बनाई जाती है। भारत दुनिया में अरंडी का सबसे बड़ा उत्पादक है। प्रसाधन सामग्री का उपयोग साबुन, लोशन, मालिश तेलों और दवाओं को बनाने के लिए भी किया जाता है।